प्राणायाम के दो उद्देश्य हैं एक श्वास की गति का नियन्त्रण दूसरा अखिल विश्व ब्रह्मांड में संव्याप्त प्राण चेतना को आकर्षित करके स्थूल, सूक्ष्म और कारणों, शरीरों को उस अद्भुत शक्ति से ओत−प्रोत करना। मनोनिग्रह में भी प्राणायाम से आशाजनक सहायता मिलती है। चंचल और उच्छृंखल मन निर्दिष्ट केन्द्र पर स्थिर होना सीखता है। इतना ही नहीं मनोविकारों के निराकरण का भी पथ−प्रशस्त होता है। साधन जगत में प्राणायाम की महत्ता एक स्वर से स्वीकार की गई है। शारीरिक और मानसिक आरोग्य की दृष्टि से उसे अतीव उपयोगी बताया गया है।
श्वास की गति में तीव्रता रहने से जीवन का शक्ति −कोष जल्दी चुक जाता है और दीर्घजीवन सम्भव नहीं रहता। श्वास की चाल जितनी धीमी होगी शरीर उतने ही अधि दिनों जीवित रह सकेगा और कई प्राणियों की श्वास का तुलनात्मक अध्ययन करने से तथ्य बिलकुल स्पष्ट हो जाता है।
प्रिमिनट श्वास की चाल और जीवन अवधि का लेखा−जोखा इस प्रकार है—खरगोश−श्वास 38, आयु 8 साल। कबूतर−श्वास 36,आयु 8 वर्ष। कुत्ता−श्वास 28, आयु 13। बकरी−श्वास 24, आयु 14। घोड़ा−श्वास 18, आयु 50। मनुष्य−श्वास 12,आयु 100। हाथी−श्वास 11, आयु 100। सर्प−श्वास 7 आयु, 120। कछुआ−श्वास 4,आयु 150 वर्ष।
भूतकाल में मनुष्यों की श्वास 11-12 बार प्रति मिनट के हिसाब से चलती थी अब वह बढ़कर 15-16 पहुँच गई है। इसी अनुपात से उसकी आयु भी घट गई है।
श्वास की गति बढ़ने से तापमान बढ़ता है। बढ़ा हुआ तापमान आयुष्य करता है। जो जानवर कुत्ते की तरह हांफते हैं—जिनकी हांफने की गति जितनी तीव्र होती है वे उतनी ही जल्दी मरते हैं। स्मरण रहे हाँफना और तापमान की वृद्धि दोनों एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। ज्वर आने पर आदमी भी हांफने लगता है। इसी बात को यो भी कह सकते हैं जिसकी साँस तेज चलेगी शरीर की गर्मी बढ़ जायगी यह गर्मी की बढ़ोतरी और साँस की चाल में तीव्रता दोनों ही जीवन का जल्दी अन्त करने वाले हैं।
दीर्घायुष्य का रहस्य बताते हुए विज्ञानी जेक्टलूवे ने बताया है कि इन दिनों मनुष्यों का शारीरिक ताप 98.6 रहता है। इसे आधा घटाया जा सके अर्थात् 49 बना दिया जाय तो आदमी मजे में 1000 वर्ष जी सकता है।
प्राणायाम में गहरी साँस लेने का अभ्यास किया जाता है। साधना समय में उसके लिए विशेष प्रयास किया जाता उथले साँस लेने की आदत को बदला जाय और उसके स्थान पर गहरी साँस लेने का अभ्यास सदा के लिए डाला जाय। इससे स्वास्थ्य संवर्धन और दीर्घजीवन की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं।
साधारणतया हर मिनट में 18 वार हमारे फेफड़े फूलते सिकुड़ते हैं। 24 घंटे में एक प्रक्रिया की 25920 बार पुनरावृत्ति होती है। प्रति श्वास में प्रायः 500 सी.सी. वायु का प्रयोग होता है। क्योंकि लोग उथला श्वास लेते हैं। सामान्यतया एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता पूर्ति के लिए हर साँस में 1200 सी. सी. वायु का उपयोग होना चाहिए। लोग आवश्यकता की देखते हुए आधे से भी कम वायु प्राप्त करते हैं। यह आधे पेट भोजन या आधी प्यास पानी की तरह ही शरीर को दुर्बल ही बनाये रहेगा,स्वास्थ्य श्वांसी सदा से गहरी साँस लेने की आवश्यकता बताते रहे हैं और कहते रहे हैं कि उथली साँस लेने की ढील−पोल से फेफड़े दुर्बल पड़ेंगे और उनमें क्षय, दमा, खाँसी, सीने का दर्द जैसे अनेक रोगों का खतरा बना रहेगा।
गहरी साँस लेने से थोड़ी राहत मिलती है और वह उस अवकाश का उपयोग रक्त को अधिक शुद्ध करने में कर सकता है। इससे हृदय पर कम बोझ पड़ेगा और वह अधिक निरोग रह सकेगा। इंग्लैंड का विख्यात फुटबाल खिलाड़ी भिड़लोथियन अपने गवीले मन और फुर्तीलेपन का कारण गहरी साँस लेने का अभ्यास ही बताया करता है वह प्रायः 2000 सी.सी. वायु हर श्वास में लेता था जबकि औसत व्यक्ति 500 सी.सी. ही लेकर छुट्टी पाते हैं। वह स्वास्थ्य संरक्षण और दीर्घजीवन का सस्ता किन्तु कारगर नुस्खा है।
डा. मेकडावल का कथन है—गहरी श्वास लेने का मतलब फेफड़ों को ही नहीं पेट के पाचन यन्त्रों को भी परिपुष्ट बनाना है। रक्त शुद्धि की दृष्टि से गहरा साँस बहुमूल्य दवादारू लेने से भी बढ़कर लाभदायक है। डा. नोल्स ने लिखा है—गहरी साँस लेने की आदत मनुष्य को अधिक कार्य कर सकने की क्षमता और स्फूर्ति प्रदान करती है। श्रम जीवियों की शक्ति साधारणतया अधिक ही खर्च होती है इससे उन्हें जल्दी थकना चाहिए पर देखा इससे उलटा जाता है वे अपेक्षाकृत अधिक बलिष्ठ रहते हैं उसका प्रधान कारण कठोर श्रम करने के साथ−साथ फेफड़ों का अधिक काम करना और उस आधार पर रक्त शुद्धि का अधिक अवसर मिलना ही होता है। डा. मेटनो इससे भी आगे बढ़कर गहरी श्वसन क्रिया का प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ना स्वीकार करते हैं। उन्होंने स्मरण शक्ति की वृद्धि से लेकर हर्षोल्लास मग्न रहने तक की विशेषता को इसी की लाभ परिधि में सम्मिलित किया है।
स्थूल शरीर में वायु संचार के लिए फेफड़े प्रधान रूप से काम करते हैं। सूक्ष्म शरीर में यह कार्य भी नाभि द्वारा वायु खींचता−छोड़ता है, सूक्ष्म शरीर को प्राण वायु का संचार करना होता है। प्राण वस्तुतः एक विद्युत शक्ति है जो आक्सीजन की ही भाँति वायु में घुली रहती हैं। श्वास−प्रश्वास के साथ ही उसका आवागमन भी होता है। वैसे उसकी सत्ता वायु से सर्वथा भिन्न है। समुद्र के पानी में नमक घुला रहता है यह ठीक है वस्तुतः वे दोनों एक दूसरे से भिन्न स्तर के ही हैं।
सूक्ष्म शरीर की नाड़ियाँ में प्रवाहित होने वाले शक्ति प्रवाह को प्राण कह सकते हैं। जिस प्रकार रक्त और रक्त वाहिनी शिरा इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहने पर भी उनकी सत्ता सर्वथा स्वतन्त्र है। इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर की नाड़ियों और उनमें प्रवाहित होने वाले प्राणों को एक दूसरे से सम्बद्ध रहते हुए भी वह सत्ता की दृष्टि से पृथक् भी ठहराया जा सकता है।
प्राणायाम हमारे स्थूल शरीर में आरोग्य बढ़ाता है। सूक्ष्म शरीर में एकाग्रता, सन्तुलन और पवित्रता उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त कारण शरीर को प्रभावित करके कतिपय सिद्धियों और विभूतियों का द्वार खोलता है, जो मनुष्य में देवत्व का उदय कर सकती हैं।