नमस्यामो देवान्नतु हत विधेस्तेऽपि वशगा ।।
विधिर्वन्द्यः सोऽपि प्रतिनियत कर्मैकफलदः ।।
फलं कर्मायत्त किममरगणैः किं च विधिना ।।
नमस्तत्कर्मभ्यो विधिरपि न येभ्यः प्रभवति ।6।
— भतृहरि
देवताओं को हम प्रणाम करते हैं, पर वह तो ब्रह्मा के आधीन हैं और
ब्रह्मा भी हम को पूर्व कर्मानुसार फल देते हैं, इसलिए फल और ब्रह्मा दोनों
ही कर्म के आधीन हैं। इस कारण हम कर्म ही को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, जिस
पर कि ब्रह्मा का भी वश नहीं चलता।