नीति श्लोक

June 1973

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 बिंदु   ब्रह्मसकृदृष्ट्वा   मनस्तस्मिन्नियोजयेत्
   स्वयमेव    तु   संपश्येद्देहे   बिंदु  च   निष्कलम् ।
   भ्रू    दहरादुपरि   सच्चिदानन्द तेजः कूट रुपम् ।
  परब्रह्म अवलोकयन्तद्रू पो भवति गर्भजन्मजरा
   मरण संसारभयात्संतारयेति तस्यात्तारक मिति।

 
— महायोग विज्ञान
भ्रूमध्य माग के ऊपर सच्चिदानंदमय तेज राशि विद्यमान है, उसे परब्रह्म कहते हैं। इस ब्रह्मबिंदु को देखने और उसमें मन लगाने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त और कहीं मन न जाने दे। यह बिंदु ब्रह्म जन्म-मरण से छुड़ाता है, संसार सागर से पार करता है, इसलिए उसे तारक ब्रह्म भी कहते हैं। यह बिंदु ध्यान तारक योग भी कहलाता है ।


सं ज्यातिषा अभूमति स देवरभूमेत्यवतदाह।
— श. 2/9/3/14
हम उस ज्योति में अपनी ज्योति मिलाकर ही देवतओं कि पंक्ति में बैठ सकने योग्य बनें ।



 ध्यानात्मा     साधकेन्द्रो       भवति     परपुरे    शीघ्रगामी
 मुनीन्द्रः  सर्वज्ञः सर्वदर्शी सकलहितकर सर्वशास्त्रार्थवेत्ता।
अद्वैताचास्वादी         विलसति      परमापूर्वसिद्धिप्रसिद्धो
        दीर्घायुः  सोऽपि  कर्त्ताः  त्रिभुवनभवनै  संहृतौ पालने च ।।35।।
— षत्चक्र निरूपणम् 35

आज्ञाचक्र को सिद्ध कर लेने वाला दूरगामी बन सकता है, सूक्ष्म रूप धारण कर सकता है। परकाया प्रवेश कर सकता है। सबका हितकारी शास्त्रों का  ज्ञाता ब्रह्मवेत्ता, प्रसन्नचित्त सिद्धि विद्याओं का ज्ञाता,  दीर्घायु, लोकव्यवस्था में सहायता देने वाला बनता है।



यदाऽऽत्मतत्वेन  ब्रह्मतत्वं
  दीपोपमेनेह युक्तः प्रपश्येत् ।
— श्वेताश्वर 2/15
योग साधक आत्मा के द्वारा ही दीपक के समान प्रकाश युक्त ब्रह्मतत्त्व के दर्शन करता है।


नीहारघूमार्कानला        निलानां
  खद्योतविद्यत्स्फटिकशशीनाम् ।
एतानि    रूपाणि   पुरः     सराणि
        ब्रह्मण्यभिव्यक्तिकराणि  योगे ।।11।।


— श्वेताश्वर 2/11
योगसाधक को कुहरा, धुआ, सूर्य, वायु, अग्नि,जूगनू, बिजली, स्फाटिक मणि, चंद्रमा जैसे कई प्रकाश दृश्य दिखाई पड़ते हैं । यह योग की सफता के चिह्न हैं।

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