नीति श्लोक

June 1973

<<   |   <   | |   >   |   >>

नास्ति  ध्यानं  बिना ज्ञानं नास्ति ध्यानमयोगिनः ।

ध्यानं  ज्ञानञ्च  यस्यास्ति  तीर्णस्तेन  भवार्णवः।।

ज्ञानं              प्रसन्नमेकाग्रमशेषोपाधिवर्जितम् ।

  योगाभ्यासेन  युक्तस्य  योगिनस्त्वेव सिद्ध्यति ।।

—   महायोग विज्ञान

ध्यान बिना ज्ञान नहीं होता। न ध्यान बिना योग सधता है। ध्यान और ज्ञान दोनों के सहारे भवसागर पार किया जाता है। ज्ञान और एकाग्रता से उपाधिवर्जित मन प्रसन्न रहता है और योग-साधना से सिद्धि मिलती है।


न     चक्षुषा     गृह्यते    नापि    वाचा

नान्यैर्देवैस्तपसा         कर्मणा      वा ।

ज्ञान          प्रसादेन           विशुद्धसत्व

   स्ततस्तु तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः ।।


—   मुण्डक 3/1/8

वह परमेश्वर वाणी, नेत्र आदि इंद्रियों से नहीं देखा जाता, न उसे बाह्यक्रिया-कृत्यों से ही पाया जा सकता है। निर्मल अंतःकरण वाले ज्ञानवान ही ध्यानावस्था में उसका दर्शन करते हैं।



<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118