एक घंटा समय और एक आना नित्य हमें देना ही चाहिए

August 1965

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हमारा यह थोड़ा-सा भी प्रयास, युग निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका बनेगा

अखण्ड-ज्योति के पाठक मात्र न रहकर, नव निर्माण योजना के सक्रिय कार्यकर्त्ता के रूप में जिनने अपने आपको प्रस्तुत करने का व्रत लिया है, वे गत गुरुपूर्णिमा से (1)एक घंटा समय और (2)एक आना नित्य देने लगे हैं। उन्हें इन दोनों अनुदानों का उपयोग निर्धारित कार्य-पद्धति के अनुसार करना आरम्भ करें देना चाहिये।

ऐसे मनस्वी लोग जिनमें इस प्रकार का त्याग करने का साहस उत्पन्न हुआ है, निश्चित रूप से अखण्ड-ज्योति के अतिरिक्त ‘युग-निर्माण योजना’ पाक्षिक भी मँगाते रहे होंगे। यदि उनमें से कोई ऐसे हों जिनने अभी तक उसका मँगाना आरम्भ न किया हो, तो उन्हें इसी मास से पाक्षिक पत्रिका मँगाना आरम्भ कर देना चाहिये। प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्त्ता के लिये उसे पढ़ना नितान्त आवश्यक है। अखण्ड-ज्योति में केवल विचार धारा रहती है। उसे कार्य रूप में कैसे परिणत किया जा सकता है? कैसे किया जा रहा है? इस मार्ग में क्या अड़चनें आती हैं? और उनका समाधान कैसे किया जाता है? आदि अनेकों जानकारियाँ पाक्षिक पत्रिका से ही मिलती हैं। देश-विदेशों में युग-निर्माण की दिशा में क्या हो रहा है? अपने परिवार के लोग कहाँ क्या कर रहे हैं, और क्या करने वाले हैं, यह सारा विवरण परिजनों में से हर एक को परस्पर विदित होता रहे और उससे एक दूसरे को प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मिलता रहे, इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिये तो उसे निकाला गया है। जिनने प्रथम वर्ष के अंकों को पढ़ लिया है वे जानते हैं कि अपने महान आन्दोलन को गति-शील बनाने के लिये इस पाक्षिक की कितनी अधिक आवश्यकता है।

युग निर्माण पाक्षिक का प्रथम वर्ष जून 65 में समाप्त हो गया। अब जुलाई से दूसरा नया वर्ष आरम्भ होता है। जिनने गत वर्ष इसे मँगाया है, वे तो इस वर्ष भी इसे मँगावेंगे ही, जिनने अभी इसे नहीं मँगाया है, उन्हें इसी जुलाई से इसे चालू कर देना चाहिये ताकि एक सक्रिय कार्यकर्त्ता के लिये जो प्रशिक्षण एवं मार्ग-दर्शन आवश्यक है वह उन्हें नियमित रूप से मिलता रहे।

एक आना नित्य का अनुदान इस प्रकार का साहित्य प्राप्त करने के लिये लगाया जाना है। जो पैसे बचाये जायें उन्हें एक पेटी में डालते जाना चाहिये और उनका उपयोग ज्ञान यज्ञ के लिये आवश्यक उपकरण प्रचार साधनों को एकत्रित करने में लगाना चाहिये। यह पैसा किसी को भेजना नहीं हैं, वरन् उसे प्रेरणा साहित्य के रूप में बदल कर अपने पास ही रखना है। किसी को दान देने की अपेक्षा उसे ज्ञान देना अधिक श्रेयस्कर है। असमर्थ अपाहिजों को छोड़कर कमा सकने योग्य व्यक्तियों के गुजारे की बात दूसरी है वे साधु, ब्राह्मणों की श्रेणी में आते हैं, उनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं व्यक्तियों को धन देना, देने वाले और लेने वाले दोनों के लिये ही पाप बनता है। देने योग्य सबसे उत्तम वस्तु ज्ञान है। यही सबसे बड़ा परोपकार है। अपना कल्याण और दूसरे का उद्धार इस प्रकार के दान से ही होता है। इसलिये जो कुछ भी दान करना हो उसे लोगों का मानसिक स्तर ऊँचा उठाने में ही किया जाना चाहिये। हम लोग एक आना रोज जो बचायेंगे, उसे केवल इसी एक कार्य में—ज्ञान यज्ञ में खर्च करेंगे।

कार्य कठिन अवश्य है पर कठिन कार्य भी तो आखिर मनुष्य ही करते हैं। आत्मोत्कर्ष की अभिरुचि उत्पन्न करना और देश-धर्म, समाज और संस्कृति सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने में अपना निज का ही हित देखना, यह दो तथ्य जब किसी में विकसित होने लगें तो समझना चाहिये कि अब इसने मानव जीवन की सीमा में प्रवेश किया। नर पशु की स्थिति में हमें अपने स्वजन सम्बन्धियों को नहीं ही रहने देना चाहिये और उन्हें नर नारायण, पुरुष पुरुषोत्तम बनाने के लिये प्रेरित करना ही चाहिये। इस प्रकार की प्रेरणा देते रहने के लिये निरन्तर प्रयत्न करना हमें अपना परम पवित्र धर्म कर्त्तव्य मानना चाहिये।

जन-जागरण की उपयोगी साधन सामग्री अभी तक अखण्ड-ज्योति और युग निर्माण योजना के माध्यम से दी जा रही थी अब इस वर्ष से इस शृंखला में एक बहुत ही महत्वपूर्ण तारतम्य जोड़ दिया गया है। वह है आग उगलने वाली ट्रैक्ट माला का अभिनव प्रकाशन। अपनी दोनों पत्रिकाओं के हर अंक में अनेक विषयों पर छोटे-छोटे बड़े उपयोगी लेख रहते हैं पर वे ऐसे नहीं होते जिनमें एक विषय पर पर्याप्त मात्रा में विचार सामग्री एक बार में ही प्रस्तुत की जा सके। ऐसा किया जाय तो सारी पत्रिका में दो-चार लेख ही बड़ी कठिनाई से दिये जा सकें। ऐसी दशा में पत्रिका विविध विषय विभूषित तो बनी रहेगी पर लोक रुचि जागृत करने का उद्देश्य पूरा न हो सकेगा! इस कमी की पूर्ति के लिये नई ट्रैक्ट माला प्रकाशन आरम्भ किया गया है। इनमें 24 पृष्ठ हैं। इतने पृष्ठों में एक विषय को पूरी तरह समझाने में काफी हद तक सफलता मिल जाती है।

गत मास विवाहोन्माद के विरोध और आदर्श विवाहों का प्रचलन करने सम्बन्धी विचार धारा का प्रस्तुत करने के लिये 10 ट्रैक्ट छापे गये थे। जेष्ठ के शिविर और सम्मेलन में जितने भी स्वजन आये थे उनने उन्हें पढ़ा और देखा तो भाव विभोर हो उठे। कड़कड़ाते हुये इतने तीव्र विचार कि उन्हें पढ़ने के बाद आदमी को पसीना आ जाय। लोगों ने अनुभव किया कि आज के कुँभकर्णी निद्रा में मूर्छित पड़े हुये हिन्दू समाज को जगाने के लिये ऐसे ही प्रखर पैने एवं प्रौढ़ विचारों की आवश्यकता है। जितने भी लोग जेष्ठ में यहाँ आये थे, वे सभी कई-कई सैट इन ट्रैक्टों के अपने साथ ले गये थे। पत्रों से पता चलता है कि जिनने भी उन्हें पढ़ा है उनके मन में हलचल मची और प्रस्तुत समस्या पर बीसियों आदमियों से उनने चर्चा की गई है। अभी पूरा एक मास भी उन्हें लोगों के हाथ में गये नहीं हुआ कि बिना दहेज और धूमधाम के आदर्श विवाहों के लिये प्रतिज्ञा लेने वाले व्यक्तियों की संख्या हजारों तक जा पहुँची है। आगे जब आन्दोलन तीव्र होगा तब उसका कितना प्रखर प्रभाव पड़ेगा यह समय ही बतायेगा, अभी तो पढ़ने वाले इस ट्रैक्ट साहित्य को प्रभाव उत्पन्न करने की दृष्टि से एक जड़ ही जमा रहे हैं।

शिविर के अवसर पर ऐसे प्रतिज्ञा पत्र भी छपाये गये थे जिनमें (1) विवाहोन्माद (2) दस दुष्प्रवृत्तियों में से कोई छोड़ने के लिये लोग संकल्प करें और उन प्रतिज्ञा-पत्रों पर हस्ताक्षर करें। (3) जो प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करें उनके लिये धन्यवाद का अभिनन्दन पत्र देने वाली एक रसीद-बही भी छपा दी गई है। प्रतिज्ञा करने वाले को एक छोटा अभिनन्दन पत्र जैसा अब ‘युग निर्माण योजना’ की ओर से मिलता है उससे उन्हें प्रसन्नता होती है और उत्साह भी बढ़ता है। जेष्ठ में मथुरा आने वाले लोग दोनों प्रकार के प्रतिज्ञा पत्र के सौ-सौ की संख्या में बने हुये यह पैकिट एवं अभिनन्दन पत्रों की रसीद बहियाँ भी साथ लेते गये थे। इससे उन्हें विवाहोन्माद के अतिरिक्त नशेबाजी माँसाहार, मृत्युभोज आदि कुरीतियों के विरुद्ध लोगों से प्रतिज्ञाएँ करने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में बहुत सुविधा मिल ही रही है।

अब आश्विन की नवरात्रि तक ऐसे 30 ट्रैक्ट और लिखने, छापने का कार्यक्रम बना लिया गया है, जिनमें प्रचलित सामाजिक, नैतिक, शारीरिक, मानसिक दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध मानव मन को झकझोर कर रख देने वाली पाठ्य सामग्री होगी। युग निर्माण आन्दोलन को कैसे विश्वव्यापी बनाया जाय, उसके हर पहलू पर ऐसा प्रकाश डाला जायगा कि हम सब अपनी कार्य-पद्धति को भली प्रकार समझ सकें और उसे सुव्यवस्थित नीति से कार्यान्वित कर सकें। 10 छप चुके। 30 अगले दो महीनों में छपने जा रहे हैं। इस प्रकार 40 ट्रैक्टों का सैट आश्विन की नवरात्रि तक तैयार हो जायगा। यों इस योजना के अंतर्गत आगे हर वर्ष, इस वर्ष भी 60 ट्रैक्ट छापे जाने हैं। हर महीने 5 छपते रहने से हमें लिखने और पाठकों को पढ़ने से सुविधा रहेगी, पर इस बार जाड़े के दिनों में हमें चार महीने दौरे पर रहना होगा। इसलिये इन दिनों लिखना संभव न हो सकेगा। अस्तु इन्हीं दिनों 40 ट्रैक्ट पूरे कर लेने हैं। 20 बाकी रहेंगे सो चैत्र बैसाख में पूरे कर देंगे।

विश्वास यह है कि जो इन्हें पढ़ेगा वह प्रभावित हुये बिना न रहेगा। कागज, छपाई, टाइटल आदि की दृष्टि से भी उन्हें नयनाभिराम आकर्षक और उच्च स्तर का बनाया गया है। देखते ही उन्हें लेने और पढ़ने की इच्छा होती है। सस्तेपन को देखकर तो एक बार भी पाठक के मुंह से यही शब्द निकलते हैं कि ईसाइयों के धर्म प्रचार साहित्य की तुलना में यही एक मात्र हिन्दू धर्म की ओर से इस तरह का प्रयत्न है जिसमें सुन्दरता और सस्तेपन की हद कर दी गई है। मूल्य लागत भर रखा गया है। पर यह तो उसके कलेवर की चर्चा हुई। भावना, प्रेरणा, तर्क और तथ्यों की दृष्टि से उनमें जो कुछ लिखा गया है वह इतना मार्मिक है कि पढ़ने वाला यदि बिलकुल ही भावनाहीन न हो तो उस विचारधारा से प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता।

नव निर्माण के लिये—जन मानस का बदला जाना आवश्यक है। इस कठिन प्रयोजन को पूरा कर सकने के लिये पैने विचार-शस्त्रों की आवश्यकता अनुभव की गई अतएव यह ट्रैक्ट माला आरम्भ कर दी गई। विश्वास यह है कि इसका असाधारण परिणाम होगा। एक घंटा समय देने वाले के लिये अब यह कई तरह की—कई श्रेणी की, कई प्रयोजनों की सामग्री उपलब्ध हो गई। अखण्ड-ज्योति जन-जीवन को उत्कृष्ट बनाने वाले छोटे-छोटे लेख प्रस्तुत करती है। युग निर्माण पाक्षिक में समाचार, प्रेरणा, मार्ग दर्शन एवं सूचनाओं का उत्साह वर्धक ऐसा संग्रह रहता है जिसे पढ़ने वाले को वैसा ही करने की उमंग उठने लगे। इन आग उगलने वाले ट्रैक्टों की उपयोगिता दोनों पत्रिकाओं से भी अधिक महत्वपूर्ण दिखाई देती है। हर घर में यह एक अभिनव पुस्तकालय की स्थापना करते हैं। एक विचार-पत्र मासिक, एक समाचार प्रचार पाक्षिक, हर महीने पाँच नई पुस्तकों की बढ़ोतरी इस प्रकार एक छोटा सर्वांग सुन्दर पुस्तकालय बन सकता है। इसे ज्ञान मन्दिर कहना चाहिये। ज्ञान की देवी गायत्री माता का यह जीवन्त देवालय होगा। फूल, धूपबत्ती, आरती, प्रसाद आदि में एक आना सहज खर्च हो जाता है। दोनों समय की पूजा में भी एक घंटे से कम नहीं लगता। घर में कितने ही लोग इस प्रकार के छोटे मन्दिर रखते हैं। उतने ही समय तथा धन की व्यवस्था करके हम सच्चे, सजीव, सार्थक गायत्री ज्ञान मन्दिर की स्थापना कर सकते हैं और उसके माध्यम से अपना, अपने परिवार का तथा अपने परिचित अनेकों व्यक्तियों का सच्चे अर्थों में भला कर सकते हैं।

एक आना प्रतिदिन में यह पुस्तकालय आसानी से चल सकता है। 4) वार्षिक अखण्ड-ज्योति का चन्दा, 6) युग निर्माण पाक्षिक का चन्दा, 12) डाक खर्च समेत 60 ट्रैक्टों का मूल्य, 2) में हस्ताक्षर प्रतिज्ञा-पत्र अभिनन्दन पत्र आदि के पत्रक। इस प्रकार 24) वार्षिक या दो रुपये प्रति मास में बड़ी आसानी से यह पुस्तकालय चल सकता है। 60 ट्रैक्ट यदि रेलवे पार्सल से इकट्ठे मँगाये जायें तो एक दो रुपया डाक खर्च के बच भी सकते हैं। एक घंटा समय रोज अथवा सात दिन में सात घंटे यदि लोगों से मिलने, उनके घर जाकर अपना साहित्य पढ़ने को देने, वापिस लेने में लगाया जाय तो उससे 10 व्यक्तियों का नियमित रूप से जीवन निर्माण का सच्चा लाभ प्राप्त करा सकते हैं। ज्ञान की देवी गायत्री माता की यह सच्ची पूजा, उस प्रतीक पूजा से हजार गुनी अधिक महत्वपूर्ण है जिसमें केवल मात्र जप, पूजन, आरती, प्रसाद तक ही सारी गतिविधियाँ सीमित कर ली जाती हैं। पूजा करना उचित एवं आवश्यक है पर साथ ही लोक मंगल के लिये प्रेरणाप्रद ज्ञान की अभिवृद्धि के लिये भी प्रयत्न कि ये जाते रहने चाहिये। हर ईश्वर भक्त के लिये यह आवश्यक है कि ज्ञान रूप भगवान की भी अपने श्रम एवं धन द्वारा अर्चना करे।इस गुरुपूर्णिमा से अखण्ड-ज्योति का प्रत्येक सक्रिय सदस्य कार्य पद्धति को अपनावेगा। आपने अभी तक यदि इसे न अपनाया हो तो आज से ही इसका शुभारम्भ कर देना चाहिये। युग निर्माण योजना का चन्दा आरम्भिक अंक से सदस्य बने अधिकाँश पाठकों को इसी महीने भेजना होगा। साथ ही दस विवाहोन्माद के ट्रैक्टों का 2) भी भेजना चाहिये। 100 प्रतिज्ञा-पत्र विवाहोन्माद प्रतिरोध के 62 पैसे, 100 प्रतिज्ञा-पत्र दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन के 63 नया पैसा तथा अभिनन्दन प्रमाण पत्रों की पुस्तक 25 नया पैसा इस प्रकार 1) 50 इस प्रचार साहित्य का भी भेजना चाहिये। 6)+2)+1)50= 9) 50 इस महीने भेजने से विवाहोन्माद एवं दुष्प्रवृत्तियों के विरोधी आन्दोलन अभी से चलाये जा सकते हैं। 30 ट्रैक्ट आश्विन तक छप जायेंगे तब उनका मूल्य 6) भेज कर अपनी लोक शिक्षण योजना को तीव्र कर देना चाहिये। इन दो-तीन महीनों में ट्रैक्टों, युग निर्माण पाक्षिक तथा प्रचार पत्रकों के लिये 15) 50 की जरूरत पड़ेगी। इसे एक साथ खर्च कर लेना चाहिये और फिर हर महीने निकाली जाने वाले अर्थ अंश से उसकी पूर्ति कर लेनी चाहिये।

लोक शिक्षण के लिये जन जागरण के लिये खर्च किया हुआ यह थोड़ा-सा समय और जरा-सा धन भले ही देखने में नगण्य लगाता हो, पर उसका प्रभाव आश्चर्यजनक होगा। अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्य इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा प्रयत्न करने लग जायँ तो युग परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका निश्चित रूप से सम्पादित कर सकते हैं।


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