मधु-संचय (Kavita)

August 1965

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उठो, उठो, सहयोगी, मिल जुल जीवन ज्योति जगाओ। श्रम साधन से नेक नियति से-धरती स्वर्ग बनाओ॥

धरती के धीरज से थिर हैं उन्नत शैल शिखर, गौरव बन कर सप्त सिन्धु लहराया करते हैं। मन की सहज सरलता से सरितायें बहती हैं- यौवन के निर्झर गति को दुलराया करते हैं॥

जीवन उसका धन है, सर्जन उसकी थाती है, जिसे नाश का कुटिल लुटेरा लूट नहीं सकता। चाहे जितनी दूर गगन में कोई विहग उड़े, किन्तु धरा से उसका नाता टूट नहीं सकता॥

—श्री शलभ


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles