आरोग्य रक्षा के तीन प्रहरी

August 1965

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चिकित्सा का क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहा है किन्तु उत्तम-स्वास्थ्य की दिशा में कोई प्रगति नहीं दिखाई दे रही। तरह-तरह की औषधियों का निर्माण, चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन तथा वैद्य, हकीमों, डाक्टरों की जितनी बढ़ोतरी इन दिनों हुई है स्वास्थ्य और आरोग्य की समस्या इतनी ही जटिल होती दिखाई दे रही है। बढ़े हुये साधनों से लाभ न हो तो यही समझना चाहिये कि हमारी जीवन पद्धति में कुछ दोष है। उसका स्वास्थ्य वाला पहलू कुछ असूझ-सा है या उधर मनुष्य का ध्यान कम है। कुछ भी हो आरोग्य के जो मूलभूत प्राकृतिक सिद्धान्त हैं उन्हें मिटाया या भुलाया नहीं जा सकता। जीवन पद्धति में दोष हो तो औषधियों का कुछ महत्व नहीं, कोई उपयोगिता नहीं।

आरोग्य मनुष्य की साधारण समस्या है। थोड़े से नियमों के पालन, साधारण-सी देख-रेख से वह पूरी हो जाती है किन्तु उतना भी जब मनुष्य भार समझकर पूरा नहीं करता तो उसे कड़ुआ प्रतिफल भुगतना पड़ता है। थोड़ी-सी असावधानी से बीमारी तथा दुर्बलता को निमन्त्रण दे बैठता है। रहन सहन में यदि पर्याप्त संयम रखा जाय तो कुछ थोड़े से नियम हैं जिनका पालन करने से मनुष्य आयु-पर्यन्त उत्तम स्वास्थ्य का सुखोपभोग प्राप्त कर सकता है। उनमें से तीन प्रमुख हैं (1) प्रातः जागरण (2) ऊषा पान (3)वायु सेवन। यह तीनों ही नियम सर्वसुलभ और रुचिकर हैं, इनमें किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं जिनका पालन न हो सके, या जिसके लिये विशेष साधन जुटाने की आवश्यकता पड़े।

प्रातः जागरण को संसार के सभी लोगों ने स्वास्थ्य के लिये अतिशय हितकर माना है। अँग्रेजी कहावत है “जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है।” शास्त्रकार का कथन है—

“ब्राम्हे मुहूर्त उत्तिष्ठेत्स्वस्थेऽरक्षार्थ मायुषः।”

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जाग उठने से तन्दुरुस्ती और उम्र बढ़ती है।

वेद का प्रवचन है—

यदद्य सूर उदितोऽनागा मित्रो अर्यमा। सुवाति सविता भगः॥

—साम 13। 51

अर्थात्—प्रातःकालीन प्राण-वायु सूर्योदय के पूर्व तक निर्दोष रहती है अतः प्रातः काल जल्दी उठना चाहिये इससे स्वास्थ्य और आरोग्य स्थिर रहता है तथा धन की प्राप्ति होती है।”

सन्त बिनोवा का कहना है—”रात में नींद लेने के बाद शरीर की वृद्धि हो जाती है। उसे कायम रखने लिये सुबह जल्दी उठ जाना चाहिये। उस समय दिमाग ताजा रहता है, कोई आवाज नहीं होती, सृष्टि की अनुकूलता होती है इसलिये उस वक्त बुद्धि-ज्ञान-ग्रहण के लिये जागृत रहती है।”

सिखों के धर्म ग्रन्थों में आया है—’अमृत बेला सचनाऊ’ अर्थात् प्रातःकाल जल्दी न उठने से बुद्धि मन्द पड़ जाती है, मेधा नहीं बनती और स्वास्थ्य गिर जाता है।

विचार-पण्डित स्वेटमार्डन ने लिखा है “यदि आप चाहते हैं कि आपकी आयु अधिक हो, बुढ़ापा आप से दूर रहे, आपका शरीर पूर्ण स्वस्थ बना रहे तो आप प्रातःकाल जल्दी उठा कीजिये।”

आरोग्य रक्षा के नियमों में प्रातःकाल जागने में विश्व एक मत है। यह जानी हुई बात है कि दिन भर के कार्यों दौड़ धूप आदि से जो धरती में हलचल उत्पन्न होती है उससे प्राकृतिक वातावरण अशान्त हो जाता है। धूल के कण, कार्बन-तत्व और अन्य विषैले पदार्थ हवा के साथ आकाश में भर जाते हैं इनका स्वास्थ्य पर दूषित प्रभाव पड़ता है। उस वायु में स्थूल तत्व अधिक होते हैं और प्राण की मात्रा कम होती है जिससे मनुष्यों के शरीरों में भी स्थूलता तो बढ़ती है और प्राण-संचय अवरुद्ध होता है। दिन भर का कोलाहल रात में शान्त होने लगता है और तीसरे पहर अर्थात् प्रातःकाल तक वह सारा ही गर्द गुबार जमीन में बैठ जाता है जिससे प्राण-वायु निर्दोष हो जाती है। इस वातावरण में स्वाभाविक साँसें लेने पर भी प्राण की इतनी मात्रा शरीर में एकत्रित हो जाती है जिससे सारा दिन तबियत प्रसन्न रहती है और ताजगी बनी रहती है। इससे प्राण का संचित कोष रीतता नहीं और आरोग्य स्थिर बना रहता है। इस प्राण में इतनी जीवट होती है जो दिन भर के विषैले पदार्थों से लड़कर उसे समाप्त कर देने में सफल हो जाती है और शरीर पर कोई दूषित आघात पड़ने नहीं पाता। इस प्राण-विद्युत के संचय के लिये प्रातःकाल जल्दी जाग उठना सब प्रकार मंगलकारी होता है।

इन लाभों को जानते हुये भी लोगों को शिकायत रहती है कि प्रातःकाल उनकी नींद ही नहीं टूटती, यदि प्रयत्न करें और जागकर बैठ जायें तो आलस्य दूर नहीं होता। शरीर को जितने विश्राम की आवश्यकता होती है वह पूरी न हो तो आलस्य आना, जम्हाइयाँ उठना स्वाभाविक है। यह शिकायत उन्हीं की हो सकती है जिनकी नींद पूरी न होती हो। ऐसा तभी संभव है जब वह देर से सोता हो। इसलिये प्रातःकाल जल्दी उठने के लिये यह आवश्यक है कि शाम को यथा संभव जल्दी ही आवश्यक कार्यों से निबट कर सो जाया जाय और जल्दी सबेरे उठकर नियमित दिनचर्या में लग जाया जाय। सोकर जाग जाने का अर्थ केवल चारपाई पर बैठ जाना नहीं होता वरन् इस समय का उपयोग भी होता रहे।

सूर्योदय से पूर्व शैया त्यागते ही बिना शौचादि गये शाम के रखे हुये जल का पान करना “ऊषापान” कहलाता है। जल की मात्रा एक पाव से लेकर तीन पाव तक हो सकती है। जिस बर्तन में जल रखा हो वह ताँबे का हो तो अधिक अच्छा है यदि यह संभव न हो तो किसी भी स्वच्छ बर्तन में ढक कर रखा जा सकता है।

वैद्यक ग्रन्थों में ऊषापान को ‘अमृत-पान’ कहा गया है, स्वास्थ्य के लिये उसकी बड़ी प्रशंसा की गई है और यह बताया गया है कि जो प्रातःकाल नियमित रूप से जल पीते हैं उन्हें बवासीर, ज्वर, पेट के रोग, संग्रहणी, मूत्र रोग, कोष्ठबद्धता, रक्त पित्त विकार, नासिका आदि से रक्त-स्राव, कान, सिर तथा कमर के दर्द, नेत्रों की जलन आदि व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। वैद्यक ग्रन्थों में लिखा है—

सवितुरुदयकाले प्रसृतीः सलिकस्य दिवेदष्टौ।

रोग जरा परियुक्तो, जीवेद्वत्सर शतं साग्रम्॥

अर्थात्-सूर्योदय से पूर्व आठ अंजुली जल पीने से मनुष्य कभी बीमार नहीं पड़ता, बुढ़ापा नहीं आता और सौ वर्ष से पूर्व मृत्यु नहीं होती।

प्रातःकाल जल पीने से आँतों में लगा हुआ मल साफ होता है और उसमें पुष्टता आती है। गुर्दे शक्तिशाली बनते हैं। आँख की ज्योति बढ़ती है, बाल सफेद नहीं होते, बुद्धि तथा शरीर निर्मल रहता है जिससे वह सब प्रकार के रोगों से बचा रहता है। प्रातःकाल जल पीना आरोग्य रक्षा की दूसरी महत्वपूर्ण कुँजी है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रातः जागरण का वास्तविक लाभ वायु सेवन से है। यदि कोई प्रातः काल उठकर कुछ दूर शुद्ध वायु में घूमने जाया करे तो निश्चय ही उसकी आयु लम्बी होगी। जिस स्थान पर मनुष्य तथा अन्य प्राणी बहुतायत से निवास करते हैं, उनके द्वारा निरन्तर साँस छोड़ने तथा चीजों को मैला करते रहने से उस स्थान का वातावरण शुद्ध नहीं रहता। वायु में दोष आ जाने से वह लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। किन्तु आबादी के बाहर के स्थान वृक्षों द्वारा निरन्तर शुद्ध किये जाते रहते हैं इसलिये गाँव या नगर से बाहर के शांतिमय वातावरण में कुछ देर रहकर आरोग्य लाभ का अवसर प्राप्त किया जा सकता है। भ्रमण से जहाँ व्यायाम की आवश्यकता पूरी होती है वहाँ बाहर की शुद्ध वायु का लाभ मिलता है। भ्रमण ऐसे ही शुद्ध बाग-बगीचों वाले स्थानों की ओर करना चाहिये। खुले आसमान की ओस भरी दूब में नंगे पाँव घूमने से शरीर को अपार शक्ति मिलती है।

स्वास्थ्य और आरोग्य रक्षा के लिये यह तीन अचूक नियम हैं। स्वास्थ्य जैसी साधारण समस्या के लिये किसी कठोर व्रत की आवश्यकता नहीं है कोई व्यक्ति इन नियमों का पालन करते हुये आरोग्य लाभ प्राप्त कर सकता है। यह तीन प्रहरी ऐसे हैं जो सब तरफ से हमारे स्वास्थ्य की रक्षा और शरीर को पोषण प्रदान करते हैं, इन्हें सजग रखें तो कोई रोग तथा शारीरिक व्याधि हमें कष्ट व पीड़ा न दे सकेगी।


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