तुझमें छिपा हुआ वह जैसे कलि में छिपा पराग है। अथवा वीणा के तारों में जैसे पञ्चम राग है।
किन्तु अपरिचित तू इससे ही तुझे नहीं विश्वास है। यह है कहता कौन कि मन्दिर मस्जिद उसके धाम है।
घट-घट वासी अगम अगोचर अन्तर्यामी राम है। उसे प्राप्त करने का साधन आत्मा का संन्यास है।
—विद्यावती मिश्र