जीवन का यह ध्येय नहीं है (Kavita)

August 1965

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जीवन का यह ध्येय नहीं है, बीते यह दुर्भोगों में, उच्छृंखल बन कलुष बढ़ाये अथवा बीते रोगों में,

बन जाये पाषाण हृदय भी मृदुल मोम कुछ करने का, मनु सन्तानों यह मत भूलो जीवन है कुछ करने को।

—श्री यज्ञदत्त अक्षय


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