समय दान सब के लिए अति सरल है।

August 1965

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ब्रह्म कर्म के लिये सद्ज्ञान प्रसार के लिये समय दान देने से बढ़कर और कोई सत्कर्म इस संसार में हो नहीं सकता। अन्नदान से भूख, जलदान से प्यास, वस्त्र दान से ऋतु प्रभाव का बचाव कुछ समय के लिये हो सकता है। धर्मशाला, बगीचा आदि का लाभ भी कोई कुछ ही समय तक ले सकता है, पर ब्रह्मकर्म के लिये सद्ज्ञान का अनुदान पाकर तो कोई अपनी जीवन दिशा ही बदल सकता है। सदुपदेश करने वाले के प्रयत्न से कोई चोर यदि महात्मा बन जाता है तो चोरी करते हुये जीवन का अधःपतन करने की महान क्षति से वह बचता है साथ ही महात्मा होने का असाधारण पुण्य परमार्थ भी पाता है। पतन से बचाने और उत्थान की ओर अग्रसर करने के सत्प्रयत्न ने उस व्यक्ति का ही नहीं, समस्त संसार में दुःख निवृत्ति और सुख-वृद्धि का पुण्य भी उत्पन्न किया। इस प्रकार सदुपदेश करते रहने से यदि थोड़े से व्यक्तियों के जीवन में थोड़ा-सा भी शुभ परिवर्तन हो जाय तो उसका पुण्यफल इतना अधिक हो जाता है जितना धन द्वारा हो सकने वाले स्थूल प्रयत्नों से बहुत कुछ करने पर भी नहीं होता।

गुरुपूर्णिमा से नव निर्माण के लिये एक घण्टा समय दान देने वाले आत्म-कल्याण और लोक-सेवा का जो श्रेय प्राप्त करेंगे उसे किसी बड़े धर्मानुष्ठान से कम महत्वपूर्ण नहीं मानना चाहिये। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिये इस प्रकार की साधना पद्धति अपनाना, अन्य किसी उपासना से कम श्रेयस्कर नहीं है। जिन परिजनों ने समय-दान का व्रत लिया है उनने सचमुच बहुत बड़ी बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, उदारता एवं उत्कृष्ट आध्यात्मिकता का परिचय दिया है, इसके लिये उनकी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी ही कम है।

चौबीस घण्टे में से एक घण्टा परमार्थ कार्यों के लिये लगा सकना कुछ कठिन बात नहीं है। ऐसा अवसर हर किसी को बड़ी आसानी से मिल सकता है। अच्छा तरीका यह है कि सायंकाल या जब भी अवकाश हो लोगों के घरों पर मिलने जाया जाय, उन्हें सत्साहित्य पढ़ने को दिया जाय एवं वार्तालाप द्वारा जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट विचार धारा अपनाने के लिये प्रभावित किया जाय। यह घण्टा लोगों को एकत्रित कर उन्हें किसी भी माध्यम से सदुपदेश करने या ऐसे सामूहिक आयोजनों की व्यवस्था करने में भी लगाया जा सकता है, जिनमें लोगों को जीवन निर्माण एवं विचार निर्माण की प्रेरणा मिलती हो। रविवार को सत्संग, सामूहिक हवन, पर्व एवं संस्कारों का आयोजन, पुस्तकें पढ़कर सुनाना आदि अनेक उपयोगी कार्यों में यह समय लगाया जा सकता है। अपनी क्या परिस्थितियाँ है और किस प्रकार समय लगाने में सुविधा रहेगी यह निर्णय हर किसी को स्वयं ही करना पड़ेगा। हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ भिन्न होती हैं इस लिये अपने ढंग से इस समय का उपयोग करने का क्रम भी स्वयं ही निर्धारित करना चाहिये।

कई व्यक्तियों की परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जो अलग से यह समय नहीं निकाल सकते। ऐसे लोग अपने संपर्क में आते रहने वाले व्यक्तियों से उनके लौकिक प्रयोजनों के साथ-साथ नव निर्माण विचार धारा की चर्चा करते रह सकते हैं। जिससे भी मिलना हो, उससे यदि आधे घंटे साँसारिक काम-काज की बात की है तो पाँच मिनट अपने उत्कर्ष अभियान की भी किसी रूप से चर्चा की जा सकती है। युग निर्माण योजना के सौ कार्यक्रम हैं, उस व्यक्ति का जिधर झुकाव हो, उसी सम्बन्ध में कुछ चर्चा की जा सकती है। काम धन्धा करते समय भी अपनी प्रचार पुस्तकें साथ रह सकती हैं, और जो उपयुक्त व्यक्ति दीखे उन्हें जल्दी वापिस करने की शर्त पर पढ़ने के लिये भी दी जा सकती हैं।

अध्यापकों को प्रतिदिन छात्रों और उनके अभिभावकों से संपर्क रखना होता है, चिकित्सक बहुत से मरीजों से रोज मिलते हैं, व्यापारी के पास ग्राहक आते ही रहते हैं, दलालों को कितनों के ही पास जाना पड़ता है, अधिकारियों और प्रभावशाली व्यक्तियों के पास कितने ही प्रयोजनों के लिये लोग आते हैं। उन्हें भी दूसरों के पास जाना पड़ता है। पोस्टमैन रोज ही सैकड़ों व्यक्तियों से मिलते हैं। यात्रा के समय रेल आदि में कितनों से ही भेंट होती है। इनमें बहुत से परिचित और बहुत से अपरिचित हो सकते हैं। किसी न किसी प्रसंग से बातचीत चलती है, जहाँ अवसर हो वहाँ अपने अभियान द्वारा प्रस्तुत विचार धारा की चर्चा कर सकना कोई कठिन कार्य नहीं है।

इस प्रकार जो लोग अपने पास समय की कमी अनुभव करते हैं, और अलग से एक घंटा निकाल कर खास तौर से जन-संपर्क के लिये कार्यक्रम बनाने में कठिनाई देखते हैं वे अपने सामान्य दैनिक कार्यक्रमों में ही ऐसा ताल-मेल बिठा सकते हैं कि लौकिक चर्चाओं के साथ-साथ नव-निर्माण की प्रेरणा का कार्य भी चलता रहे। एक व्यक्ति से पाँच मिनट भी चर्चा की जाय तो बारह व्यक्तियों से इस संक्षिप्त चर्चा में ही एक घंटा लग सकता है जो किसी प्रकार अखरेगा भी नहीं और अपना संकल्प भी पूरा हो सकता है। महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों को उपयोगी प्रसंग सुनाकर, वार्तालाप द्वारा परिजनों को समझाने का क्रम अपनाकर, प्रतिदिन कथा, कहानियाँ कहते रहने का नियम बनाकर इस एक घंटा समय-दान की पूर्ति कर सकती है। घर के दो पाँच व्यक्ति भी उनकी इस चर्चा का लाभ उठाते रहें तो भी कुछ कम महत्व की बात नहीं है।

समय दान किसी के लिये भी कठिन नहीं है। व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति भी यदि उसकी भावना होगी तो किसी न किसी प्रकार इतना समय अवश्य लगाता रह सकता है। इच्छा ही न हो तो बहाने बनाने के लिये निठल्ले व्यक्ति के पास भी सौ बातें कहने को हो सकती हैं, जिसकी आड़ लेकर वह अपनी मजबूरी का रोना रोया करे। अखण्ड-ज्योति परिवार में प्रायः ऐसे बहानेबाज़ नहीं के बराबर ही हैं। इसलिये अधिकाँश ने समय दान का व्रत ग्रहण किया है और उसे निवाहते रहने का वचन दिया है। जो अलग से समय न निकाल सकने की कठिनाई अनुभव करते थे वे अपने दैनिक कार्यक्रमों में भी यह धर्म प्रचार प्रक्रिया जोड़ सकते हैं। इस प्रकार हम में से हर कोई समय दान सम्बन्धी अपना धर्म कर्त्तव्य बड़ी आसानी से पालन कर सकता है।


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