न जात्या ब्राह्मणाश्चात्र क्षत्रियो वैश्य एव न।
न च शूद्रो न वै म्लेच्छो भेदिता गुण कर्मभिः॥
जन्म या जाति से न कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होता है ओर न शूद्र ही। जाति, जन्म की दृष्टि से सब समान हैं। किन्तु गुण, कर्म के आधार पर अवश्य विभेद तथा अलग - अलग वर्ण हो जाता है। जो जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही वर्ण प्राप्त होगा।
अतः जीवन में सफल होना है, विजयी बन कर जीवन बिताना है, संसार में ढकेले जाने वाले नहीं वरन् संसार को गति देने वाले बन कर रहना है, जीवन के उतार-चढ़ाव, हार-जीत के द्वन्द्वों में, कठिनाई उलझनों की झंझाओं में स्थिर रहना है, संसार पर अपनी छाप छोड़ कर जाना है, आशा और उमंग का जीवन बिताना है, तो अपने आत्म-विश्वास को जगाइये, उसे विकसित कीजिए। स्मरण रखिए आत्म-विश्वासी के लिए ही संसार स्थान देता है। जो अपने आपको महत्वपूर्ण नहीं मानता उसे संसार भी ढकेल कर एक ओर कर देता है।