गुरु पूर्णिमा-पर्व की शानदार सूचनाएँ

September 1964

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युग-निर्माण योजना का प्रथम वर्ष ता॰ 24 जुलाई आषाढ़ गुरु पूर्णिमा- को पूरा हुआ और दूसरा आरम्भ हुआ। यह पुनीत पर्व अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य ने किसी- न -किसी रूप में मनाया। ऐसे कोई विरले ही बचे होंगे जिनने इस ओर उपेक्षा बरती हो। जहाँ कुछ अधिक सदस्य हैं, वहाँ सामूहिक आयोजन हुए और जहाँ उनकी संख्या एक - दो ही है वहाँ व्यक्तिगत रूप से गुरु पूजन के साथ-साथ योजना के अनुभव जीवन में डालने की तैयारी की गई। यों गुरु पूर्णिमा अन्यत्र भी अपने ढंग से मनाई जाती है पर उनमें और अपने आयोजनों में अन्तर यह है कि दूसरे लोग गुरु पूजन मात्र करके कर्त्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं जबकि अखण्ड - ज्योति परिवार के सदस्यों को अगले वर्ष आत्म -निर्माण के कुछ न कुछ कार्यक्रम बनाने और आगे बढ़ने के लिए कदम उठाने का भी संकल्प करना होता है।

जुलाई की अखण्ड - ज्योति में पृष्ठ 49 से 65 तक वे सारे कार्य - क्रम प्रस्तुत किये गए हैं जिन्हें अपनी - अपनी परिस्थिति के अनुसार हममें से प्रत्येक को कुछ तो क्रियान्वित करना ही होगा। प्रसन्नता की बात है कि परिजनों ने उस पर पूरा -पूरा ध्यान दिया है। जिनकी उपासनाएं शिथिल या बन्द हो गई थीं, उनने उसे इसी गुरु पर्व से पुनः आरम्भ कर दिया है। अपने स्त्री बच्चों से भी किसी-न-किसी रूप में उसे शुरू कराया है। हर घर में, हर परिवार में, हर व्यक्ति में, आस्तिकता का बीजाँकुर पनपने, ईश्वर विश्वास को सुदृढ़ रखने के लिए उपासना में निष्ठा होना आवश्यक है। चरित्र-निर्माण का-आधार आस्तिकता ही हो सकती है। इसलिए अपनी प्रेरणा पद्धति का यह एक आवश्यक अंग रहा है कि किसी-न-किसी रूप में उपासना के लिए अन्य आवश्यक नित्य कर्मों की तरह स्थान रहना चाहिये। अस्तु इस गुरु पर्व पर परिवार में जो उपासना करने वाले लोग थे अब उनकी संख्या दूनी से अधिक हो गई है।

व्यक्तिगत जीवन सुधार कार्य-क्रम में (1) समय का सदुपयोग करने के लिए नियमित दिनचर्या बनाकर उसके अनुसार बरतते हुए आलस्य को हटाना। (2) बजट बना कर खर्च करने का क्रम निर्धारित कर फिजूलखर्ची पर कठोर नियन्त्रण लगाना। (3) क्रोध और आवेश को शत्रु मानते हुए सहिष्णुता और सज्जनतायुक्त व्यवहार करना तथा मीठा बोलना। (4) घर में अपने से बड़ों को नित्य प्रातःकाल प्रणाम, चरणस्पर्श करना। (5) शरीर वस्त्र, घर और सामान को अधिकाधिक स्वच्छ रखना। (6) आहार को अधिक सात्विक और व्यवस्थित बनाना तथा ब्रह्मचर्य के संबन्ध में अधिक कठोरता बरतना, यह छह कार्यक्रम परिवार में अधिक उत्साहपूर्वक अपनाये गये हैं और संकल्प यह किया है कि अगले एक वर्ष में इन छह बातों में अधिकाधिक सफलता प्राप्त करने के लिए पूरी तत्परता से प्रयत्न किया जायगा।

परिवार निर्माण के लिए घर में एक घण्टा रोज की परिवार गोष्ठी चलाने का क्रम गुरुपूर्णिमा के दिन से उत्साहपूर्वक आरम्भ हुआ है। गतवर्ष परिजनों में से केवल दसवाँ भाग ऐसा था जो इन गोष्ठियों को चलाता था, अब प्राप्त सूचनाओं के अनुसार यह संख्या बढ़कर एक तिहाई हो गई है। प्रगति इसी क्रम से चली तो शेष दो तिहाई सदस्य जो अभी शिथिलता बरत रहे हैं वे भी परिवार प्रशिक्षण के लिए नियमित रूप से एक घण्टा रोज देने लगेंगे। कुटुम्ब को सुसंस्कृत, संगठित और सुविकसित बनाने के लिए इन गोष्ठियों का कितना अधिक महत्व है इसका अनुभव यह क्रम आरम्भ करने वालों को थोड़े ही दिन में हो जाता है। घर में जो अब तक अशिक्षित रहे है उन्हें इन दैनिक गोष्ठियों द्वारा शिक्षित बनाने का क्रम चल पड़ा है। कन्याओं को स्कूल न भेजने या थोड़ा पढ़ा कर बन्द कर देने की जो संकीर्ण दुर्बलता लोगों के मनों में भरी हुई थी उसे भली प्रकार झकझोर दिया गया है और लोग अब अपनी लड़कियों को भी लड़कों की तरह ही सुशिक्षित बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इस प्रेरणा से प्रभावित होकर वे कन्यायें जिनकी शिक्षा का द्वार प्रायः बन्द हो चुका था अब पुनः खुल गया है उनकी संख्या दस हजार से कम नहीं है। घरों में नैतिक, सामाजिक, साँस्कृतिक विषयों की चर्चा चल पड़ने या सुनने का नित्य क्रम बनने से हर घर में विचारक्रान्ति की चिनगारी सुलगाई गई है। थोड़े ही दिनों में इसकी लपटें उठेंगी तो बढ़ती हुई गर्मी और रोशनी का उत्साह भरा वातावरण दिखाई देने लगेगा।

युग-निर्माण के उपयुक्त नई पीढ़ी में नये महापुरुष जन्मने वाले हैं। उच्च लोकों की दिव्य आत्माएँ भारत भूमि पर अवतरित होने वाली हैं। वे मानव जाति का नेतृत्व करके विश्वशान्ति की भूमिका प्रस्तुत करेंगी। दिव्य आत्माओं के नये अवतरण के लिए उन परिवारों का वातावरण सुसंस्कृत होना आवश्यक है जहाँ वे जन्म लें। सम्भव है यह श्रेय अपने परिजनों को मिले। इसलिए उनका पारिवारिक वातावरण अधिक-से-अधिक सुसंस्कृत होना चाहिए। अन्यथा गर्हित वातावरण में कोई दिव्य आत्मा जन्म लेना या ठहरना पसन्द न करेगी। परिवार निर्माण योजना के पीछे यह एक रहस्यमय प्रक्रिया भी छिपी हुई है, इसलिए इस बात पर बहुत जोर दिया गया है कि हममें से प्रत्येक को अपने परिवारों का वातावरण उत्कृष्ट बनाना चाहिए और अपने उज्ज्वल चरित्र का घर में लोगों के लिए अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। प्रसन्नता की बात है कि परिजनों ने इस प्रयोजन को समझा है और अपने-अपने परिवारों में श्रेष्ठ परम्पराएँ प्रचलित करने की ओर आवश्यक ध्यान दिया है। इस गुरुपूर्णिमा से शिथिल लोगों ने भी आवश्यक प्रयत्न आरम्भ कर दिये हैं।

समाज-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि अपने समय का एक अंश लोक-सेवा के लिये नियमित रखा जाय, समाज सेवा को भी अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं में नित्य कर्मों से सम्मिलित रखा जाय। जिस प्रकार अपनी निज की तथा अपने व्यापार, परिवार की समस्याओं पर ध्यान दिया जाता है वैसे ही समाज के उत्थान पतन में आवश्यक दिलचस्पी ली जाय। विकृतियों को रोका जाय और सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाया जाय। यह तभी सम्भव है जब हमारे समय का एक अंश इन कामों के लिए भी लगे। प्रसन्नता की बात है कि अखण्ड - ज्योति परिवार के सदस्यों ने इस दिशा में आवश्यक उत्साह दिखाना आरम्भ कर दिया है। “ज्ञान यज्ञ के लिये समय दान” का प्रश्न हर एक के सामने एक आवश्यक प्रश्न के रूप में उपस्थित हुआ है। कम ही लोग ऐसे हैं जिनकी संकीर्णता पैरों की जंजीर साबित हुई है अन्यथा अधिकाँश ने उदारता, साहस और दूरदर्शिता को अपनाते हुए समय का एक अंश इस दिशा में लगाना आरम्भ कर दिया है।

गुरुपूर्णिमा आयोजनों की प्राप्त सूचनाओं से विदित होता है कि इस वर्ष वृक्षारोपण, शाक बोना तथा फूल उगाने की दिशा में लोगों का उत्साह फूट पड़ा है। अनुमानतः इस वर्षा ऋतु में परिजनों ने दस हजार वृक्ष लगाये हैं और जितनी शाक भाजी बोई है उसका आधा भी यदि ठीक तरह उग सका तो एक लाख टन से कम सब्जी उत्पन्न न होगी। स्वास्थ्य सुधार तथा अन्न संकट की दृष्टि से यह उत्पादन कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसी प्रकार लगभग एक लाख घर ऐसे होंगे जिनके आँगनों में- बाहर तथा गमलों में रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल खिले होंगे तथा तुलसी के बिरवा लहलहा रहे होंगे।

शिक्षा प्रसार के लिये प्राइमरी स्कूल, मिडिल स्कूल, हाईस्कूल, कन्या विद्यालय खुलवाने, उन्हें विकसित कराने, छात्रों की संख्या बढ़वाने, इमारतों के लिए चन्दा कराने, श्रमदान तथा भूमिदान के द्वारा स्कूलों का स्थान बनाने, सरकारी सहायता उपलब्ध करने के कार्य पर हर जगह जोर दिया जा रहा है। उसी प्रकार प्रौढ़ शिक्षा के लिये जगह-जगह छुट-पुट प्रयत्न चल रहे हैं। स्त्री शिक्षा के लिए तीसरे पहर और पुरुष शिक्षा के लिये रात्रि पाठशालाएं चलाई जा रही हैं जिनसे साक्षरता की समस्या हल हो। कामों में लगे हुए लोगों के लिए ऐसे रात्रि विद्यालय स्थापित कराये जा रहे हैं जिनमें पढ़कर प्राइवेट परीक्षाएँ दे सकना लोगों के लिए सम्भव हो सके। स्कूली छात्रों के लिए ऐसी कोचिंग - ट्यूटोरियल - रात्रि पाठशालाएं चलाई जा रही हैं जिनमें छात्र स्कूली पढ़ाई भी पूरी कर सकें और नैतिकता की आवश्यक शिक्षा भी प्राप्त कर सकें। शिक्षा प्रसार राष्ट्र - निर्माण का आवश्यक अंग है। उसे बढ़ाने के लिए अखण्ड ज्योति परिवारों ने मिलजुल कर अपने - अपने ढंग से कार्य आरम्भ किए हैं। गुरु पूर्णिमा से इन प्रयासों में दूनी तेजी आई है।

दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखना, व्यायामशाला, प्राकृतिक चिकित्सा आदि कितने ही उपयोगी कार्य ऐसे हैं, जो अभी भी उपेक्षित पड़े हैं। उस दिशा में अभी बहुत थोड़ा प्रयत्न हुआ है। आशा है आगे चलकर यह प्रवृत्तियाँ भी बल पकड़ेगी। जब कि लोग समाज सेवा के लिए कुछ समय नियमित रूप से लगाने ही लगे हैं और सामूहिकता का महत्व समझकर संगठित होने लगे हैं तो कुछ ही दिन में अनेकों रचनात्मक कार्यों का श्रीगणेश होने ही वाला है।

गुरुपूर्णिमा पर्व को जिस शान के साथ अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों ने देश भर में मनाया है उसके समाचार, ‘युग-निर्माण योजना’ पाक्षिक पत्रिका में संक्षिप्त रूप से छपेंगे ही। उन पर दृष्टिगत करने से कोई भी विचारशील व्यक्ति यह अनुमान भली प्रकार लगा सकेगा कि अपने छोटे से परिवार ने युग - निर्माण की दिशा में इस शुभ दिन से जिस उत्साह और लगन के साथ कदम बढ़ाये हैं उससे उज्ज्वल भविष्य की सम्भावना स्पष्ट है। अभी एक वर्ष ही हुआ है। हमारे अगले वर्ष कितने गौरवपूर्ण होंगे इसकी कल्पना मात्र से आँखों में आशा की ज्योति चमकने लगती है।


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