मधु-संचय (Kavita)

September 1964

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जीवन गति का नाम धाम से जिसको काम नहीं।

जीवन है वह पंथ कि जिस पर यति विश्राम नहीं।

जीवन है पाथेय समय के अविचल राही का।

जीवन है बल कुरुक्षेत्र के तपे सिपाही का।

पौरुष के माथे पर श्रम का बाना जीवन है।

जीवन है शृंगार कर्म का, तप की गीता है,

जीवन है वह घट जो अक्षय जल पी रीता है,

जीवन उसका अनुगत, जिसने उसको जीता है,

जीवन उसका स्वामी जिसका यौवन बीता है,

सगर सुतों पर सुरसरि धार बहाना जीवन है ।

- विद्यावती मिश्र

कर्त्तव्य - मार्ग पर डट कर, आगे बढ़ते ही जाओ,

जब तक न सफल हो जाओ, जब तक न विजय-श्री पाओ;

तुम कर्म-सिंह नर - वर हो, विचरो सदैव निर्भय हो-

भगवान - भक्ति का बल हो, आशा से भरा हृदय हो;; दुखियों के दुःख मिटाओ, मृतकों में जीवन भर दो,

पीड़ित हताश हृदयों में, आशा आलोकित कर दो;;

सन्ताप -ताप -तम- टारो, सेवा -सुख -सूर्य उदय हो-

मन, वचन, कर्म में शुचिता, आशा से भरा हृदय हो;; अज्ञान भाव ना व्यापे, अन्याय न रहने पाए,

कोई न किसी के द्वारा, पीड़ित हो कष्ट उठाए;;

सब - सब पर प्रेम प्रसारें, सबमें सद्भाव-विनय हो -

यम - संयम जीवन - व्रत हो, आशा से भरा हृदय हो;;

प्राणों का मोह न करके, जो जन - हित कर जाते हैं,

सुख - सुविधा भर जाते हैं, भव सागर तर जाते हैं;;

उन वीरों का यश - सौरभ, हे भगवन्। कभी न क्षय हो-

हम कर्म - वीर बन जायें, आशा से भरा हृदय हो,

- कविरत्न डॉ॰ हरीशंकर शर्मा

छिप- छिप अश्रु बहाने वालो मोती व्यर्थ लुटाने वालो!

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है!!

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी!

जैसे रात उतार चाँदनी पहने सुबह धूप की धोती!!

वस्त्र बदल कर आने वालो चाल बदल कर जाने वालो!

चन्द खिलौनों के खोने स बचपन नहीं मरा करता है!!

कितनी बार गगरिया फूटी शिकन न पर आई पनघट पर!

कितनी बार किश्तियाँ डूबीं चहल-पहल वो ही है तट पर!!

तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों!

लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है!!

लूट लिया माली ने मधुवन, लूटी न लेकिन गंध फूल की!

तूफानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बन्द न हुई धूल की!!

नफरत गले लगाने वालो, सब पर धूल उड़ाने वालो!

कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पन नहीं मरा करता है!!

-नीरज

सदाचार सँवर उठे, जगह - जगह गुरुत्व में,

वदान्यता निखर उठे, जगह -जगह प्रभुत्व में,

भविष्य जगमगा उठे, अबोध छात्र वृन्द का,

लिखो स शक्त भाग्य - लेख मातृ -भूमि हिन्द का

गुरुत्व हो सफल हर एक लाड़ला महान हो।

कि भारतीय लोकतंत्र सर्व शक्तिमान हो॥

- अज्ञात

थक जाएगी डगर एक दिन-

गति में यदि आये न शिथिलता।

मिल जायेगी शान्ति सुनिश्चित।

अधरों पर आए न विकलता ॥

शूलों की नोकों पर खिलते सुन्दर सुमन अपार।

भूल न जाना पंथ, घिरा हो चहुँ दिशि में अधियार॥

- रामस्वरूप खरे, एम. ए.

मैं सृष्टि - प्रलय का खेल खेलता रहता हूँ माया रचकर।

मेरा स्वर लेकर मूक पथिक अपने मन की कह जाता है॥

मेरे प्रकाश के कण - कण लेकर ज्योतित हैं तारे, हिमकर रवि।

जग के प्राणों में बिखरी है मेरे ही प्राणों की शुभ छवि॥

मेरी गुरुता का रूप शैल, मेरी लघुता का चित्र धूल।

मेरा ही रूप विराट विश्व, लघु रूप विश्व का मेरा कवि ॥

- विनोद रस्तोगी॥

युग - निर्माण आन्दोलन की प्रगति-


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