प्रभावशाली व्यक्तित्व

May 1947

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र, एम. ए.)

समाज को नित्य प्रति के व्यवहार में मिचे-2 से रहना अपनी बात न कह सकना, या मन मसोस कर रह जाना भी एक भयंकर मानसिक व्याधि है। एक ऐसे कमरे की कल्पना कीजिए, जो चारों ओर से बन्द हो, जिसमें वायु, प्रकाश इत्यादि के प्रवेश के सम्पूर्ण मार्ग अवरुद्ध हैं। जो व्यक्ति हँस-खेल कर आत्म प्रकटीकरण नहीं कर पाता उसकी दशा ऐसी ही है। वह समाज में आदर का पात्र नहीं बन पाता।

आज के मनुष्य का जीवन इतना व्यस्त है कि उसे दम मारने का अवकाश नहीं। दफ्तर में सम्पूर्ण दिन भिन्न-भिन्न कार्यों में व्यतीत हो जाता है। दुकानों पर ग्राहकों को बनाने में बहकी बहकी बातें करनी पड़ती हैं। हृदय खुल नहीं पाता। मनुष्य में हृदय रूपी पुष्प की सब पँखुरियाँ पूर्ण विकसित नहीं हो पाती, बन्द की बन्द रह जाती हैं। उनके हृदय में अनेक मन्तव्य, विचारधाराएं, अनुभव, प्रकाश में आने की प्रतीक्षा देखा करते हैं। यदि वे विचार प्रकट न हों, तो मनुष्य के जीवन में एक अजीब थकान, आलस्य, नीरसता, एवं शुष्कता सी आ जाती है। आत्म-प्रकटीकरण व्यक्तित्व के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक तत्व है।

इपिक्टेशिश कहा करते थे, मनुष्य को अपनी बातें कहने दो, तुम देखोगे कि हममें से प्रत्येक के पास अनुभवों, विचारों, मंतव्यों के विशाल ग्रन्थ प्रकाश में आने की बाट जोह रहे हैं। वास्तव में अपनी विगत घटनाएं सुना सुना कर मनुष्य दूसरे की सहानुभूति प्राप्त करने का भूखा है। वह चाहता कि कोई उसकी अपनी दुनिया में झाँककर देखे। उसकी प्रसन्नता आह्लाद में रस ले, दुखों कष्टों एवं वेदनाओं के प्रति सहानुभूति प्रकट करे, उसकी उमंगों के प्रति समस्वर रहे, वह जो कुछ कहता है सुने समझे तथा अन्य व्यक्तियों को उसी के गुण स्वभाव का बनाये। आत्म प्रकटीकरण के मुख्यतः दो ही उद्देश्य हो सकते हैं। 1.-अपनी बातें सुनाकर दूसरे की सहानुभूति प्राप्त करना। 2.-दूसरे को अपनी विचारधारा का बनाना, उस पर अपनी मोहनी शक्ति डालना, वश करना। व्यक्तित्व के निर्माण में यह दूसरा उद्देश्य प्रमुख है। जब तक आप दूसरे के मन में अपना दृष्टिकोण ठीक तरह न बिठलायेंगे तब तक वह आप जैसी विचार धारा का कैसे बनेगा?

आप स्वयं ही दूसरों पर प्रभाव डाल सकते हैं। दूसरे आपके विषय में कुछ भी कहते रहें, यदि आप में व्यक्तित्व के निर्माण के गुण हैं, तो अन्य कोई कुछ भी नहीं कर सकता। सर्वप्रथम आपका आत्म विश्वास है। आत्म श्रद्धा ही वह प्रभावशाली शस्त्र है, जो आपके चेहरे को पौरुष से पूर्ण बनाता है, नेत्रों को चमका देता है, तथा अनुपम तेज से युक्त बनाता है। अधिक से अधिक व्यक्तियों से मिलिये और चुपचाप अपनी आत्मश्रद्धा को बढ़ाइये। श्रद्धा ही बाह्य एवं अन्तरंग अवस्था एक सी बनाती है। आत्म-श्रद्धा ही उत्पादक शक्ति, रचनात्मक तत्वों की जननी है। आप यह मानिये कि आप धीरे-2 मजबूत बन रहे हैं, उन्नति करते जा रहे हैं, लोगों को अपने स्वभाव तथा रुचि का बना रहे हैं। इसी प्रकार विश्वास दृढ़ होने पर आपके अणु परिमाण में एक नया प्राणमय प्रवाह उत्पन्न हो जायगा।

प्रिय पाठक! उठिये और मानसिक आलस्य को त्यागकर साहस बरतिये। डरिये नहीं। कोई भी तुम्हारा कुछ अहित नहीं कर सकता। आप एक निश्चित उद्देश्य लेकर निरन्तर साधना में लग जाइये, उसी को प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का परिचय संसार को दीजिये। तुम आत्म विश्वास लेकर जिस क्षेत्र में प्रविष्ट होंगे वही तुम्हारी प्रतिभा से दीप्तिवान् हो उठेगा।

सदैव नई नई बातें, नया ज्ञान, तथा संसार में होने वाले प्रगति से भिज्ञाहिये। विद्वानों से वार्तालाप कीजिये, उत्तमोत्तम सद्ग्रन्थों का अवलोकन कीजिये, तथा अद्भुत व्यक्तियों के रहस्यों को जानने का प्रयत्न कीजिये। वे ही गुण अपने व्यक्तित्व में लाने का प्रयत्न कीजिये।

प्रसन्नता, मधुर शब्दावलि, शुभ चिन्तन ये दैवी तत्व हैं जिससे पाषाण सदृश्य व्यक्ति को भी वश में किया जा सकता है। सत्य धर्म का पालन, दूसरों से सत्य व्यवहार, पवित्र चरित्र, ये ऐसे सूत्र हैं, जो अवश्य अपना प्रभाव दिखलाकर रहेंगे। उत्तम स्वास्थ्य से जगमगाता हुआ मुख देखकर कौन प्रभावित न होगा।

आत्मिक ज्ञान से मनुष्य अनेक यौगिक तथा मानसिक शक्तियों का स्वामी बन सकता है और दूसरों को अपना हितैषी बना सकता है।


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