एक समय में एक काम!

May 1947

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यह स्वर्णिम सिद्धाँत हर एक को सदा याद रखना चाहिए कि एक समय में एक काम करेंगे। जब भोजन करना हो तो सारी चित्तवृत्तियों को एकत्रित करके सामने परोसे हुए भोजन के मधुर स्वाद का आस्वादन करते हुए उसके स्वास्थ्यप्रद गुणों का स्मरण करते हुए, प्रसन्न पूर्वक उसे उदरस्थ करना चाहिए। जब बाल बच्चों में खेलना हो तो सारी दिलचस्पी से उनकी मधुर बातें सुनो और अपनी कहो, जब हिसाब-किताब करने बैठों तो पूरे अर्थशास्त्री बन जाइए। जब भजन का समय आवे तो सम्पूर्ण एकाग्रता उसी कार्य में होनी चाहिए। खेलते समय पक्के खिलाड़ी और भाषण काल में प्रभावशाली वक्ता होना आवश्यक है और यह तभी हो सकता है, जब चित्त स्थिर हो वह कूद-फाँद न सके वक्ता किसी अच्छे विषय पर भाषण देते हैं, पर बीच-बीच में उनकी प्रवाह शृंखला टूट जाती है। अभी एक बात की व्याख्या कर रहे थे। वह बात पूरी न हो पाई कि दूसरी बात चल पड़ी और फिर वह भी अधूरी रह गई। इस प्रकार अनेकों अधूरी बातों से भरा हुआ भाषण एक बकवास मात्र रह जाता है। इस अधूरेपन के दोष के कारण कितने ही वक्ताओं की ववतत्व शक्ति का, मानत्व नष्ट हो जाता है। यह दोष चित्त की अस्थिरता का प्रतीत है। बेचारा वक्ता मन को एक स्थान पर केन्द्रीभूत रखने की कला से अनभिज्ञ होने के कारण मन के पीछे-पीछे इधर-उधर भागता फिरता है और अपना उपहास कराता है।

चंचल चित्त वाला व्यक्ति सदा असावधान भुलक्कड़ एवं गलती करने वाला होता है। इन दोषों वाला डॉक्टर अपने रोगी के लिए एक खतरा हो सकता है। ऐसा व्यापारी भारी घाटे के चक्कर में फँस सकता है। ऐसा वकील मुकदमे को हरा सकता है। ऐसा विद्यार्थी फेल हो सकता है।


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