(महात्मा गाँधी)
मेरी दृष्टि में तो गौ-रक्षा मनुष्य-जाति के विकास में एक अद्भुत चमत्कारपूर्ण घटना है। यह मनुष्य-प्राणी को उसकी स्वाभाविक मर्यादा के ऊपर ले जाती है। मुझे तो गाय मानो मनुष्य-जाति से नीचे की सम्पूर्ण सृष्टि नजर आती है। गाय के द्वारा मनुष्य प्राणीमात्र के साथ अपने तादात्म्य के अनुभव का अधिकारी होता है, मुझे तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि गाय ही अकेली क्यों देवता मानी गई है। हिन्दुस्तान में गाय से बढ़कर मनुष्यों का साथी दूसरा कोई नहीं। उसने बहुतेरी वस्तुएं हमें दी हैं। उसने हमें केवल दूध ही नहीं दिया है बल्कि हमारी खेती का भी सारा आधार उसी पर है। गाय तो एक मूर्तिमयी करुणामयी कविता है। इस नम्र प्राणी में करुणा ही करुणा दिखाई देती हैं। भारत के लाखों मनुष्यों की वह माता हैं। गौ-रक्षा का अर्थ है-ईश्वर की सम्पूर्ण मूक सृष्टि की रक्षा। लेकिन प्राचीन ऋषियों ने फिर वे चाहे कोई हों, आग का ही, श्री-गणेश किया। सृष्टि की नीची श्रेणी के प्राणियों को वाक्शक्ति नहीं है। इसलिए उनकी अपील में सबसे अधिक बल है। गौ-रक्षा संसार को हिन्दू धर्म का दिया हुआ प्रसाद है। और तब तक हिन्दू धर्म जीवित रहेगा जब तक हिन्दू लोग गौ रक्षा करने के लिए मौजूद हैं।
गौ रक्षा करने का मार्ग हैं- उसके लिए स्वयं मर मिटना। हिन्दू धर्म और अहिंसा यह आज्ञा नहीं देते कि गौ-रक्षा के लिए किसी मनुष्य प्राणी का वध करो। हिन्दुओं को तो तपस्या, आत्म-शुद्धि और स्वार्थ त्याग के द्वारा गौ-रक्षा करने का आदेश दिया गया है। आज कल की इस गौ-रक्षा ने मुसलमानों के साथ एक चिरस्थायी शत्रुता का रूप धारण कर लिया है, हालाँकि गौ-रक्षा का अर्थ तो है मुसलमानों को प्रेम से अपने वशीभूत करना। एक मुसलमान मित्र ने कुछ समय पहले, मुझे एक पुस्तक भेजी थी उसमें सविस्तार रूप से यह बताया गया था कि हम लोग गाय के और उसकी सन्तान के साथ कैसा अमानुषी व्यवहार करते हैं। हम किस बेरहमी के साथ खून टपकने तक उसे दुहते हैं। एक बूँद तक दूध उसके थन में नहीं रहने देते! बैलों के साथ किस निष्ठुरता से पेश आते हैं। किस तरह हम उन्हें पीटते और कितना सारा बोझ उन पर लादते हैं! अगर उन्हें बोलने की शक्ति होती तो वे उनके प्रति किये हमारे अपराधों का बयान इस तरह अपने मुँह से करते कि सारी दुनिया दहल उठती। अपने चौपायों के प्रति अपने एक एक निर्दयता-पूर्ण कार्य के द्वारा मानो इस ईश्वर का और हिन्दू धर्म का त्याग कर रहे हैं! इस अभागे भारतवर्ष में चौपाये की जितनी बुरी दशा है उतनी मैं नहीं जनता कि दुनिया कि किसी दूसरे देश में होगी। हम अँग्रेजों को इसके लिये दोषों नहीं बता सकते। अपने इस अपराध के लिए हम दरिद्रता की दुहाई नहीं दे सकते। हमारे चौपायों की दुर्दशा का एकमात्र कारण है हमारी अक्षम्य-लापरवाही। हाँ, हमारे पिञ्जरा पोले हैं वे हमारे दयाभाव की तृप्ति का साधन भी हैं, परन्तु हैं वे उन दया युक्त कार्यों के बेढंगे प्रदर्शन ही। वे नमूना रूप दुग्ध-शाला और महान् लाभदायक राष्ट्रीय संस्था होने के बजाय केवल अपाहिज और निर्बल गायों का एक संग्रह स्थान भर हैं।
हिन्दुओं की पहचान न तो उनके तिलकों से होगी, न उनके मन्त्रों के शुद्ध घोष से, न उनके तीर्थाटन से और न जाति बन्धन के नियमों के अत्यन्त शिष्टाचार युक्त पालन से ही होगी! बल्कि उनकी पहचान तो उनके गौ-रक्षा के सामर्थ्य से होगी। हम गौ-रक्षा को अपना धर्म मानने का दावा तो बड़ा करते हैं, लेकिन वास्तव में तो हमने गाय को और उसकी सन्तति को अपना गुलाम बना डाला है और खुद भी गुलाम हो गये हैं।
अब यह बात समझ में आ जायगी कि मैं क्यों अपने को सनातनी हिन्दू समझता हूँ। गौ के प्रति जो मेरी श्रद्धा है उसमें मैं किसी से हारने वाला नहीं। मैंने खिलाफत के कार्य को जो अपना कार्य बनाया था उसका सबब यही था कि उसकी रक्षा के द्वारा मुझे गाय की पूरी तरह रक्षा होने की सम्भावना दिखाई देती थी। मैं मुसलमान भाइयों से यह नहीं कहता कि मेरी इस सेवा के खातिर वे गाय की रक्षा करें। मैं तो उस सर्व शक्तिमान परमात्मा से ही नित्य यह प्रार्थना करता हूँ कि जिस कार्य को मैंने न्याय समझा है उसके निमित्त की गई मेरी सेवा तेरी इतनी प्रसन्नता का कारण हो कि जिससे तू मुसलमानों के हृदयों को बदल दे, उन्हें अपने हिन्दू भाइयों के प्रति दया-भाव से परिपूर्ण कर दे और उनके द्वारा उस प्राणी की रक्षा करो, जिसे हिन्दू लोग अपने प्राणों की तरह प्यारा मानते हैं।