जो अपने बारे में तुच्छता के विचार रखता है वह सचमुच तुच्छ है और जिसका विश्वास है कि मैं महान् हूँ, सचमुच वहीं महान् है।
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परमात्मा जिस पर अत्यन्त प्रसन्न होता है उसे नदी सी दानशीलता, सूर्य सी उदारता और पृथ्वी की सी सहनशीलता प्रदान करता है।