ये सतत संघर्ष की घड़ियाँ अमर होंगी

May 1947

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(श्री रामकुमार चतुर्वेदी)

मिट रहे हो तुम, न होगा व्यर्थ यह मिटना,

लुट रहे हो तुम, न होगा व्यर्थ यह लुटना।

बीज अमरण है तुम्हारी भस्म का कण कण,

तुम मिटोगे, किन्तु, मरुथल को बना मधुबन॥

ऊसरों को जो बनाती जा रही उर्वर

ये तुम्हारी अश्रु की लड़ियाँ अमर होंगी। ये सततः॥

दीप होते हैं कि जो बुझते हिलोरों से,

तुम लपट हो और फैलोगे झकोरों से।

ये तुम्हारे क्रान्ति-डमरू के गमकते स्वर,

भस्म कर देंगे तमिस्रा गूँज कर घर घर॥

रच रही जो पृष्ठ भू नव-सृष्टि की प्रति पल,

ये प्रलय की दीप्त फुलझड़ियाँ अमर होंगी। ये सतत.॥

आज इस भूकम्प में जो तुम खड़े अविचल,

पाठ लेंगे कल इसी से विश्व के निर्बल।

वज्र हो जितना प्रबल, उतना अटल विश्वास,

हर चरण बलिदान का होगा नया इतिहास॥

शान्त होगा विश्व, अम्बर स्वच्छ जिनके बाद

ये विकट तूफान की झड़ियाँ अमर होंगी। ये सतत.॥

जानता हूँ, तुम हृदय पर हो रखे पत्थर,

ज्ञान है- तुम आज प्यासे चल रहे पथ पर।

किन्तु तुम से भी अधिक प्यासे नयन उनके,

भस्म शोषण ने किये घर बार जन जिनके॥

कर रही जो पौडियो में ऐक्य का संचार

ये तुम्हारे प्यार की कड़ियाँ अमर होंगी। ये सतत.॥

*समाप्त*


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