(मास्टर उमादत्त जी सारस्वत कविरत्न, बिसवाँ)
(1)
“ अवतार न लेते प्रभु! क्यों?”
कह दोष मुझे देते हो।
यह व्यर्थ कल्पना कैसी?
हाँ,। तुम्हीं नहीं चेते हो॥
हैं ‘दशरथ’ कहाँ दिखाओ।
मत दोषी मुझे बनाओ।
(2)
यदि हिरण्यकश्यप कोई
हैं कष्ट तुम्हें पहुँचाते।
प्रह्लाद-समान न क्यों तुम,
तो सत्याग्रह कर जाते।
राणा प्रताप बन जाओ।
मत दोषी मुझे बनाओ।
(3)
हैं अगणित कंसासुर अब,
वसुधा पर मैंने माना।
पर नहीं चाहते तुम ही
मुझको ही आज बुलाना।
हैं कितने ‘नन्द’ बताओ।
मत दोषी मुझे बनाओ॥
(4)
जब पड़ती तुम्हें जरूरत
मैं शक्ति-रूप धर आता!
‘गोखले -पटेल -जवाहर’
या गाँधी हूँ प्रकटाता।
कुछ तुम तो कर दिखलाओ।
मत दोषी मुझे बनाओ।