(श्री पं. रामेश्वरनन्द शर्मा, लाल बाग, बम्बई)
तम्बाकू पीने की लत मुझे बचपन में ही लग गई थी। आगरे में जमुना किनारे साधुओं की संगति करके इस आदत को मैंने प्रसाद की तरह पाया और कुछ ही समय में गाँजा तथा चरस की भी चिलमें चूसने लगा। भंग भवानी का भी सेवन चलने लगा। इस प्रकार अपने हाथों अपने धर्म-कर्म और स्वास्थ्य में आग लगाता हुआ समय बिताने लगा।
मुख में दुर्गन्ध आना, दृष्टि में निर्बलता, भूख में कमी, कफ खाँसी का आक्रमण, बुद्धि का भ्रष्ट होना यह तम्बाकू के वरदान हैं, जो उसकी उपासना करता है, उन्हें यह सब सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। मैंने जब यह वरदान पाये तो अपनी घर फूँक तमाशा देखने की नीति पर होश आया। बार-बार विचार करने लगा कि पैसा और समय बर्बाद करके इस घातक आदत से पुजारी मैं क्यों बना हुआ हूँ। आप्त पुरुषों के वचनों का अध्ययन किया तब तो गफलत से बेदार होने लगा। बड़ों को तम्बाकू पीते देखकर छोटे बच्चे या छोटी बुद्धि वाले इस आदत को सीखते हैं और यह दुर्गुण छूत की बीमारी की तरह एक से दूसरों में फैलता है। इस प्रकार एक तम्बाकू पीने वाला उन अनेक लोगों के पतन के लिए भी उत्तरदायी और पाप का भागी ठहरता है। दूसरों का बहुत अधिक धन, समय और स्वास्थ्य इस बुरी लत के पीछे जो नष्ट होता है इसका बहुत बड़ा भार हमारे ऊपर है, क्योंकि हमारी देखा-देखी हमारा आदर्श मानकर अनेक छोटे लोग इस सत्यानाशी आदत के चंगुल में फँसते हैं। यह सब सोचते-सोचते मैं व्याकुल हो गया और एक दिन निश्चय किया कि - “तम्बाकू पीने का आज से परित्याग करता हूँ।”
मैंने सुना था कि तम्बाकू पीना छोड़ने में बड़ा कष्ट होता है। सचमुच वह बात ठीक निकली। जब तम्बाकू पीना छोड़ा तो नाना प्रकार के उदर विकार उत्पन्न होने लगे। कभी पेट फूलना, कभी टट्टी साफ न होती, कभी खट्टी डकारें आतीं। यह बड़ा पेचीदा सवाल है। अनेक डॉक्टर तम्बाकू को पेट की खराबी पैदा करने वाला बताते हैं, उसे छोड़ने से यह बात क्यों पैदा होनी चाहिए? यदि डाक्टरों का कथन सही है तो तम्बाकू छोड़ते ही पाचन शक्ति में उन्नति होनी चाहिए? फिर यह गड़बड़ी क्यों?
विचार करने और खोज करने पर पता चला कि- हम लोग मसाले और मिठाई का संयोग करके आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन कर जाते हैं और फिर तम्बाकू की उत्तेजना से पेट में स्वाभाविक शक्ति के अनुसार भोजन हजम कराना है, तो उतनी ही मात्रा में खाना चाहिए, जितनी कि वास्तव में जरूरत है। वास्तविक जरूरत की पहचान यह है, कि भूख के अनुसार बिना मिर्च-मसालों का भोजन भी स्वादिष्ट लगता है। आवश्यकता से अधिक खाना हो तो चटपटापन, मिठाई आदि का उसमें समावेश करना होता। मैं इस गुप्त भेद को समझ गया और नमक, मिर्च, मिठाई आदि स्वादिष्ट मिलावटें छोड़कर सादा-सात्विक, हल्का और ताजा भोजन करने लगा। वजन की दृष्टि से प्रायः एक तिहाई भोजन अपने आप कम हो गया। पहले छः रोटी खाता था और बिना नमक का साग खाने पर चार रोटी से ही काम चल जाता। यही पेट की वास्तविक आवश्यकता थी। इतनी मात्रा आसानी से हजम होने लगी और पाचन क्रिया में धीरे धीरे उन्नति होने लगी। तम्बाकू छोड़ने से पेट के जो द्रव उठते थे, वे शान्त हो गये। करीब एक डेढ़ माह बाद जब पाचन क्रिया ठीक हो गई तो मैंने फिर नमक आदि खाना प्रारम्भ कर दिया।
पाठकों से मेरी प्रार्थना है कि वे यदि तम्बाकू पीते हों तो इस धन-धर्म नाशक आदत को छोड़ दें। यह कुछ कठिन नहीं है। मजबूत मन से दृढ़ निश्चय कर लेने पर इसे छोड़ देना सहज है। एक डेढ़ माह के लिये नमक मसाले और मिठाई छोड़ देने पर पेट फूलने आदि की शिकायतें मिट जाती हैं। मुझे अपने अनुभव के आधार पर विश्वास है कि जो सज्जन इस बुरी लत से छुटकारा पाने का संकल्प करेंगे, वे आसानी से कृतकार्य हो जावेंगे।