मिल कर चलो

March 1942

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(वेद का अमर सन्देश)

यस्मिन् सर्वाणि भूतानि, आत्मा एव अभूत् विजानतः। तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वं अनु-पश्यतः॥

- (वा0 यजु0 40/5)

जिस समय सब प्राणियों को ज्ञानवान मनुष्य एक ही आत्मा समझने लगता है, उस समय मोह कहाँ? और शोक कहाँ? क्योंकि उस समय वह एकत्व का दर्शन करता है।

केवलाघाँ भवति केवलादी।

(ऋग॰ 10/119/6)

अपने आप अकेला खाने वाला निस्सन्देह पापी है।

संगच्छभ्वं संवद्धवं संवो मनाँसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥

(ऋग0 10/191/2)

अर्थ:- हे मनुष्यों! मिल कर चलो, मिलकर बोलो, तुम्हारे मनों के भाव समान हों। जैसे तुम्हारे पूर्वज विद्वान समान ज्ञान रखते हुये काम करते थे, वैसे ही तुम भी करो।

समानो मंत्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्। समानं मंत्र मभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि॥ (ऋ॰ 10/191/3)

अर्थ:- हे मनुष्यों! तुम्हारे विचार समान हों। तुम्हारी सभा एक हो, तुम्हारे मन और चित्त एक से हों। मैं तुम्हें एक सा उपदेश देता हूँ, मैं तुम्हें सब कार्य मिलकर करने का आदेश करता हूँ।

समानी व आकूतिः समानाहृदया निवः।

समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति॥

(ऋ॰ 10/191/4)

अर्थ:- हे मनुष्यों! तुम्हारे संकल्प समान हों। तुम्हारे हृदय एक हों। तुम्हारे मन एक हो, जिससे कि तुम प्रसन्नतापूर्वक परस्पर मिले-जुले रहो।

सहृदयं सामनस्य मविद्वेषं कृष्णोमित्रः।

अन्योऽन्यमभिहर्यत वत्सं जातमिनाघ्न्या॥

(अधर्व0 3/30/1)

अर्थ:- हे मनुष्यों! मैं तुम्हें समान हृदय वाला, समान मन वाला, और एक-दूसरे से द्वेष न करने वाला, रहने का उपदेश करता हूँ। जैसे गौ उत्पन्न हुए अपने बच्चे के पास दौड़ी आती है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे के पास प्रेम से जाओ।

ज्यायस्वन्तश्चितिनो मावियौष्टि संसाधयन्तः सधुराश्चरन्त। अन्योऽन्यस्मैं वल्गुवदन्त एत सध्री चीनान् वः संमनसस्कृणोमि॥

(अथर्व0 3/30/5)

अर्थ:- गुणों में बड़े बनते हुये, ज्ञान को बढ़ाते हुये, एक-दूसरे को प्रसन्न करते हुये, मिलकर कार्यभार उठाते हुये, एक-दूसरे को मीठी वाणी बोलते हुये चलो। मैं तुम्हें आपस में मित्रता करने वाले,मिलकर बैठने वाले और एक मन रखने वाले, रहने का उपदेश करता हूँ।


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