जो शुद्ध पवित्र और निर्दोष पुरुष को दोष लगाता है उस मूर्ख को उसका पाप लौटकर लगता है। जैसे वायु के रुख फेंकी हुई धूलि अपने ही ऊपर आ पड़ती है।
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जिस प्रकार बिना पतवार की नाव लहरों पर इधर-उधर उछला करती है उसी प्रकार ध्येय रहित तथा कर्तव्य से उदासीन मनुष्य अनेक प्रलोभनों से टकराता रहता है।
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पाप से घृणा करो। असंयम से द्वेष करो। दुष्ट आचरणों से बैर करो। नास्तिकता का विनाश करो। जिनमें से दोष हो उनसे अलग रहो। परन्तु आत्मा की दृष्टि से उनसे घृणा न करो।