जो मनुष्य ईश्वर और उसके अद्वितीय अविचल सम्राट पद को नहीं मानता उसकी आकाँक्षा कभी तृप्त नहीं हो सकती।
*****
मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली भाँति परिचित रहता है। परन्तु उस अपने दल से भी परिचित होना चाहिये।