स्वर योग

June 1940

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(ले.—श्री. नारायणप्रसादजी तिवारी, कान्हीबाड़ा)

यह लिखा जा चुका है कि स्वर योग के अंतर्गत ज्योतिष ज्ञान भी है अतएव अब मैं सूक्ष्म रूप से इस विषय पर लिखता हूँ।

प्रायः लोग अपने भविष्य का विचार करने इधर उधर भटकते हैं और कभी-2 धोखेबाज़ों के चंगुल में फँसकर व्यर्थ धनहानि करते हैं उनसे प्रार्थना है कि इस विज्ञान द्वारा कुछ अनुभव प्राप्त करें।

भविष्य विचार करते समय मुख्यतः निम्न चार बातों का ध्यान रखना चाहिये-

प्रश्नकर्त्ता का स्थान

श्वाँस पूरक है अथवा रोचक

प्रश्नकर्त्ता के नाम या प्रश्न के शब्द

तत्व :—

अब इसमें से प्रत्येक बातों पर पृथक विचार किया जाती है।

1. जब कि प्रश्न विचारने वाले का इड़ा स्वर चलित हो और प्रश्न कर्त्ता ऊपर, सामने या बाईं ओर से प्रश्न करे अथवा प्रश्न विचारक के सूर्य स्वर में प्रश्न कर्त्ता नीचे, पीछे अथवा दाहिनी ओर से प्रश्न करे तो कार्य की सफलता है, इसके विपरीत हो तो असफलता समझना चाहिये।

2. विचारक के पूरक में प्रश्न करना शुभ है तथा रेचक में अशुभ—अर्थात् जिस समय प्रश्न कर्त्ता प्रश्न करें और विचारक श्वास भीतर खींचता हो तो शुभ और बाहर छोड़ता हो तो अशुभ।

3. शब्द गणना इस विषय पर मतभेद है। किसी का मत है कि प्रश्न कर्त्ता के नाम के शब्द गिने जावें और किसी का विचार है कि प्रश्न के शब्द गिने जावें, यदि चन्द्र स्वर चलता हो शब्दों की गणना सम हो अथवा सूर्य चलता हो और शब्दों की गणना विषम हो तो कार्य में सफलता होगी, इसके विपरीत हो तो अशुभ समझियेगा।

4. यह लिखा जा चुका है कि तत्व इस प्रयोग में कठिन विषय है जिसे तत्व पहचान का पूर्ण अभ्यास न हो उसके लिये एक दूसरा सरल प्रयोग लिखा जाता है जो इस प्रकार है—

प्रश्न विचारक श्वास लेकर कुम्भक (रुकी हुई श्वाँस) से एक पुष्य ऊपर फेंके, यदि पुष्प चलित स्वर की ओर गिरे तो प्रश्न की सफलता समझो और यदि अचलित स्वर की ओर गिरे तो असफलता समझना चाहिये।

यदि योगी स्वतः अपने विषय में प्रश्न करना चाहे तो उसे स्वतः न विचारकर दूसरे से प्रयोग कराना चाहिये और उसे उपरोक्त बातों का ध्यान रखने समझा देना चाहिये—साथ ही इस बात पर विशेष ध्यान रखा जावे कि प्रश्न करने के बाद ही तत्व के विषय में विचार करने के लिये पुष्प दे देना चाहिये-

जहाँ तक हो प्रश्न कर्त्ता को चाहिये कि प्रश्न विचारक के पास कोई पुष्प अथवा रक्त वर्ण कागज लाना चाहिये जिससे उसके आते ही स्वर योगी यह समझले कि आगन्तुक प्रश्न कर्त्ता है और स्वर आदि के विषय में सतर्क हो जावें, प्रश्न कर्त्ता के प्रश्न को ठीक उन्हीं शब्दों में लिख देना चाहिये ताकि शब्द गणना में भूल न हो।

यदि कोई पुत्र तथा कन्या जन्म विषय का प्रश्न पूछे और उस समय सूर्य स्वर चलता हो तो पुत्र तथा चन्द्र स्वर चलता हो तो कन्या सुषुम्ना हो तो नपुँसक या अंग हानि संतान होना समझो। जल तत्व हो तो पुत्र, पृथ्वी या वायु तत्व हो तो कन्या, तेज तत्व हो तो गर्भ हानि समझो—आकाश तत्व हो तो बालक नपुँसक या अंग हीन होगा—

उपरोक्त चार प्रकार के प्रश्न विचार किया जाता है इन चार बातों में से अधिक बातें शुभ हैं या अशुभ उसी प्रकार प्रश्न फल कहना चाहिये—कभी कभी यह भी हो सकता है कि चार बातों में से दो बातों से शुभ तथा दो से अशुभ फल प्रतीत हो सकता है ऐसी दशा में निम्न बात का भी विचार करना चाहिये—

प्रश्न कर्त्ता प्रश्न पूछने के समय यदि पूर्व तथा उत्तराभिमुख होवे और चन्द्र स्वर चलता हो अथवा दक्षिण या पश्चिम की ओर उसका मुख हो और सूर्य स्वर चलता हो तो शुभ समझो अन्यथा अशुभ—रोग विषयक प्रश्न—यदि चलित स्वर की ओर से प्रश्न किया जावे तो रोग कैसा ही असाध्य हो लाभ होगा—चलित स्वर की ओर से कर्कश स्वर में प्रश्न किया जावे तो लाभ अवश्य होगा किन्तु कष्ट के साथ।

प्रश्न कर्त्ता की दृष्टि प्रश्न करते समय यदि किसी जीवित प्राणी पर हो तो रोगी को अवश्य लाभ होगा प्रश्न करते समय यदि प्रश्न विचारक की श्वाँस पूरक हो तो शुभ और रेचक हो तो अशुभ समझो यदि प्रश्न अचलित स्वर की ओर से किया जावे और प्रश्न शब्दों की संख्या विषम हो अथवा सुषुम्ना नाड़ी में प्रश्न हो तो रोग घातक है।

प्रश्न कर्त्ता यदि पहले अचलित स्वर से प्रश्न करे और फिर चलित स्वर की ओर आ बैठे तो रोगी को कष्ट होकर लाभ होगा—प्रश्न कर्त्ता नीचे खड़ा होकर यदि नम्र वचन से प्रश्न करे तो रोगी को लाभदायक ऊपर की और से भयानक शब्दों का उच्चारण करे तो रोगी को घातक है प्रश्न विचारक का प्राण वायु चन्द्र स्थान में हो और प्रश्न कर्त्ता का प्राण वायु सूर्य स्थान में हो तो सैंकड़ों वैद्यों का उपचार भी रोगी के लिये निरर्थक है काल ज्ञानः—जिसकी श्वाँस वायु दिन रात एक ही स्वर में बहती हो उसकी तीन वर्ष से अधिक आयु न समझना चाहिये। जिसकी दो दिन रात बराबर सूर्य नाड़ी चले उसकी आयु दो वर्ष की समझो यदि एक ही स्वर तीन दिन रात बराबर चले तो उसकी आयु एक वर्ष की समझो, यदि दिन में लगातार सूर्य तथा रात्रि में चन्द्र चले तो 6 मास में मृत्यु भय है।

यदि वर्ष, मास, अथवा पक्ष के आरंभ में ही 25 दिन तक लगातार सूर्य स्वर चले तो दूसरा मास देखना भी उसके लिये शंका का विषय है।

जिसे अपनी जीभ का छोर, नाक या भौं नहीं दिखती उसकी मृत्यु निकट समझो।

मैथुन करते समय आदि में, मध्य में और अंत में जिस मनुष्य को हिचकी लगती है उसका मरण निकट समझना।

जिस मनुष्य की बीच की तीन अंगुली टेढ़ी न होवे और बिना रोग कण्ठ सूखता हो उसका काल निकट है। घी, तेल या पानी में जिसे अपना प्रतिबिम्ब देखते समय शिर न दिखे एक मास में उसकी मृत्यु समझो, हाथ से कान के छिद्र बन्द करने पर जिसे एक प्रकार की आवाज हो जाती है, नहीं सुनाई दे उसके शिर पर काल समझो!

वैसे तो मौत के लक्षण जानने के लिए और भी इस प्रकार की कई बातें हैं, किन्तु विशेष आजमाई हुई दो तीन बातें लिख इस प्रकरण को बन्द कर दूसरा प्रकरण लिखूँगा—

काँसे की थाली में पानी भरकर उसमें सूर्य की छाया दिखावे यदि छाया दक्षिण दिशा में कटी हुई दिखे तो छः महीने में, पश्चिम में कटी दिखे तो तीन महीने में, उत्तर में कटी दिखे तो दो महीने में, पूर्व में कटी दिखे तो एक महीने में, और उसमें यदि छिद्र दिखे तो दस दिन में धुएं से ढंकी हुई छाया दिखे तो उसी दिन मृत्यु का प्रमाण ऋषि वाक्य हैं।

यह प्राकृतिक नियम है कि दाहिने हाथ की मुट्ठी बाँध कर नाक के बराबर भौं के ऊपर माथे पर रखें और नाक के सामने कलाई करे तो दृष्टि करे तो हाथ बहुत पतला दिखता है किन्तु यदि हाथ से मुट्ठी पृथक दिखे तो छः मास के अन्दर मृत्यु निश्चय जानो।

वर्ष फल—वर्ष फल जानने की सुगम विधि यह है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रभात के समय चन्द्र स्वर के साथ पृथ्वी, जल या वायुतत्त्व हो तो शुभदायक है अग्नि या आकाश तत्व हो तो भयदायक है।

क्रमश—


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