यदि तुम्हें महान पूर्व पुरुषों की भाँति कर्म करने का अवसर न मिले तब भी कम से कम अपने विचार तो उनकी भाँति रखने चाहिये और उनकी आत्मा के महत्व का अनुसरण करना चाहिए।
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जो मनुष्य ईश्वर और उसके अद्वितीय अविचल सम्राट पद को नहीं मानता, उसकी आकाँक्षा कभी कम नहीं हो सकती।
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मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली भाँति परिचित रहता है। परन्तु उसे अपने बल से भी परिचित होना चाहिए।