श्री 1108 महात्मा सच्चे बाबा के उपदेश

June 1940

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(एक भक्त)

इस समय आसुरी संपदा बढ़ रही है। भगवान की प्रतिज्ञा है कि वे पाप का नाश करते हैं। मनुष्य आसुरी संपदा के बल से रावण जैसी शक्ति प्राप्त करना चाहता है। पर वह नहीं जानता कि ईश्वर क्या चाहता है।

*****

ईश्वर नहीं चाहता कि आदमी शैतानी ताकत के बल पर असुरों जैसा अभिमानी बने। उस महाशक्ति की इच्छा है दुनिया में सत्य, प्रेम और पवित्रता का साम्राज्य रहे। बीसवीं शताब्दी का वैज्ञानिक मनुष्य आसुरी संपदा के अभिमान में डूब गया है फलतः उसके कदम नाश की ओर उठते हुए चले जा रहे हैं।

*****

इन दिनों पाप का विकास और पुण्य का ह्रास हुआ है। अनुमान है कि पाप का परिणाम तीन चौथाई और पुण्य एक चौथाई चल रहा है। इसीलिए ईश्वरीय प्रेरणा से युद्ध, रोग, प्राकृतिक कोप आदि चल रहे हैं। हो सकता है कि पाप के अनुमान से ही जनसंहार होकर रहे।

*****

जिन्हें अपनी रक्षा की चिन्ता है, जो इस भयंकर विपत्ति में से अपना त्राण चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि नास्तिकता को त्यागकर आस्तिक बनें और आसुरी जीवन को दैवी जीवन में परिणित करें।

*****

आसुरी अहंकार समस्त दोषों की जड़ है। जिन्हें दोषों से बचने की इच्छा है, जो दारुण दुखों से त्राण पाने के लिए उत्सुक हैं उन्हें चाहिये कि मिथ्या अहंकार को त्यागकर परमात्मा की शरण लें।

*****

जो ईश्वर की शरण को प्राप्त हुआ है उसका हृदय स्वच्छ काँच के फानूस के भीतर जलने वाली बत्ती के समान है उसके भीतर और बाहर चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है।

*****

ईश्वर भक्ति में लीन होने के बाद मनुष्य साँसारिक वस्तुओं को भूल जाता है । उसे सभी चीजें ईश्वरमय दिखाई देने लगती हैं। वह विषयों की ओर से गूँगा, बहरा और अन्धा हो जाता है। ईश्वर के अतिरिक्त उससे न कुछ कहा जाता है, न सुना जाता है और न देखा जाता है।

*****

कैसे जाना जाय कि ईश्वर मुझसे प्रसन्न है परमात्मा की जिस पर विशेष कृपा होती है उसे सूर्य जैसी उदारता, पृथ्वी जैसी सहनशीलता और नदी जैसी दानशीलता मिलती है।

*****

जब तक मनुष्य अपने को कर्ता मानता है तब तक उसे अपने साज संभाल की बड़ी चिन्ता करनी पड़ती है जब वह अपने को प्रभु के ऊपर छोड़ देता है तब वह निश्चिन्त हो जाता है। क्योंकि वह जानता है कि सर्व त्यागी भक्त का योगक्षेम भगवान के जिम्मे है।

*****

भगवद् भक्तों की निन्दा मत करो । प्रभु अपनी निन्दा सहन कर सकते हैं किन्तु भक्त की नहीं ।

*****

ईश्वर प्राप्ति की इच्छा रखने वाले साधक सद्गुरु के सम्मुख उपस्थित हों। उनकी कृपा से ही नेत्रों को वह ज्ञानार्जन प्राप्त होता है जिसके द्वारा दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है और ईश्वर का स्वरूप दृष्टिगोचर होता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118