मरने के बाद हमारा क्या होता है?

June 1940

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(ले.—श्री. प्रबोध चन्द गौतम, साहित्य रत्न, कुर्ग)

पिछले अंक में पुनर्जन्म के कुछ उदाहरण दिये गये थे। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है। हर जगह कुछ दिनों बाद ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं। परन्तु लोग उसकी उपेक्षा करते हैं। पूना में एक गरीब घराने का बालक अपने पूर्व जन्म संबंधी कुछ बातें बता रहा था। वहाँ के शिक्षित लोगों का ध्यान मैंने आकर्षित किया तो उन्होंने कहा कि जीवित रहने के लिए जो काम करने हैं उन्हीं के लिए हमारे पास समय नहीं है तो पूर्व और पश्चात जन्मों के बारे में जानकर क्या करना है। प्रायः ऐसी ही भावना हमारे समाज की है। इसे मूर्खता कहा जाय या दीर्घसूत्रता? भविष्य की चिन्ता न करने से बढ़कर और क्या अज्ञान हो सकता है। बच्चों का विवाह करना है, मकान बनवाना है, बुढ़ापे के लिए धन जोड़ना है, आदि चिन्ताएं तो हम करते हैं पर मरणोत्तर जीवन की कुछ भी तैयारी नहीं करते। यहाँ तक कि इस बात की शोध भी अच्छी तरह नहीं की जाती कि मरने के बाद हमारा क्या होता है।

यह उपेक्षा मानव बुद्धि पर बट्टा लगाने वाली है। जिस प्रकार हम अपने भविष्य के सारे प्रोग्राम बनाते हैं और उनकी जानकारी प्राप्त करते हैं उसी प्रकार उस जीवन के बारे में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए जो एक दिन निश्चयपूर्वक मिलने वाला है। यदि उस जीवन के बारे में बिलकुल अनजान रह जायगा तो उसे पशु की भाँति कष्ट उठाना पड़ेगा जो जंगल में से पकड़ कर तुरन्त ही खूँटे से बाँधा गया है। अजनबी पन के कारण कैसी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, इसे मुक्त भोगी ही जानता है।

मरने के पश्चात पुनर्जन्म होता है। जिन्होंने अपनी आत्मा का उत्थान करके उसे मुक्त बना लिया है उनकी बात को छोड़कर शेष सभी साधारण प्राणी जन्म मरण के चक्र में घूमते हैं। मनुष्य मरने के बाद मनुष्य जाति में ही जन्म लेता है यह पिछले अंकों में समझाया जा चुका। आत्मा जितना विकास की प्राप्ति हो चुका उससे पीछे नहीं हट सकता। शरीर जितना बड़ा हो गया उससे छोटा नहीं हो सकता। बुरे कर्मों के फल इस योनि में भी मिलते हैं। पशु योनि की अपेक्षा तो सच्ची दण्ड योनि मनुष्य शरीर ही है क्योंकि जितनी वेदनाएं इसमें हैं अन्य किसी में नहीं। पूर्व जन्म की स्मृति के जितने भी उदाहरण मिलते हैं वे प्रायः सब के सब यही साक्षी देते हैं कि मनुष्य का पुनर्जन्म नर देह में ही होता है।

अभी कुछ ही दिन की बात है हमारे कुर्ग में एक ऐसा ही प्रत्यक्ष प्रमाण लोगों ने देखा था बड़े बाजार के आखरी कोने पर राजपूतों की एक गली है। उसमें तेरहवाँ मकान बुल्ली राजपूत का है। इसका एक छोटा चार वर्षीय बालक रामनगर जाने की धुन लगाये हुये था। बार-बार घरवालों से कहता था मुझे मेरे घर रामनगर पहुँचा दो। मैं रहा हूँ। मेरी स्त्री मेरे बिना चिन्तित होगी। बहुत दिनों तक उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जब लड़के द्वारा अपनी बात बार-बार दुहराई जाती रही तो चर्चा बस्ती में फैली। मुझे भी मालूम हुआ। तब हम सब लोग जिनमें एक वकील, दो अध्यापक, एक पोस्ट मास्टर तथा कई प्रतिष्ठित व्यक्ति थे लड़के को लेकर रामनगर पहुँचे। वहाँ हमारे बहुत से परिचित व्यक्ति थे, उन में से कई को बुला लिया गया और उनके साथ मछवाह टोला पहुंचे। यहाँ पहुँचते ही उस चार वर्षीय बालक ने कहा अब मुझे अपने मकान का रास्ता अच्छी तरह मालूम है आप लोग पीछे-2 चले आइये। हम लोग पीछे लड़का आगे था। बालक सीधा दौड़ता हुआ रामधन कहार के घर में घुस गया। वहाँ मृत रामधन की स्त्री और उसके दो छोटे बालक बैठे हुए थे। लड़का बिना झिझके उनके पास चला गया और दोनों लड़कों का नाम ले लेकर पुकारा। स्त्री से पूछा तुम्हें मेरी याद तो नहीं आती? कोई कष्ट तो नहीं है? मरते समय मेरी जबान बन्द हो गई थी इसलिए तुम से कुछ कह न सका था। मेरी सोने की बालियाँ घर के इस कोने में एक हाथ गहरी गढ़ी हुई है उन्हें खोदकर निकाल लो। लोगों ने वह जगह खोदी तो पीतल की छोटी सी डिब्बी में उसी जगह सोने की बालियाँ रखी हुई मिलीं। पड़ोस में रामजी भड़भूजे की दुकान थी। लड़के ने भीड़ में खड़े हुए रामजी को पहचाना और कहा तुम्हारे तेरह आने पैसे मेरे ऊपर कर्जा हैं सो मैं तुम्हें दूँगा। उसने अपने वर्तमान पिता बुल्ली से कहा चाचा इनके तेरह आने पैसे चुकादो। बेचारे बुल्ली के पास कुछ नहीं था इसलिए हम लोगों ने उसके पैसे चुकाये। परीक्षा के तौर पर वहाँ उपस्थित लोगों की भीड़ ने उससे तरह तरह के प्रश्न किये जिनके उसने यथाविधि सबके उत्तर ठीक दिये। कभी-कभी बालक भूल भी जाता था और किसी के संबंध की सारी बातों को किसी के साथ जोड़ देता था। परन्तु वह घटनाएं शत प्रतिशत ठीक होती थी। भूल केवल घटना और उसके संबंधित व्यक्ति को जोड़ने में होती थी। फिर भी अस्सी सैकड़ा उसकी बातें निर्विवाद और बिलकुल सच थीं। एक हजार आदमियों की उपस्थित भीड़ में से उसने करीब दो सौ को पहिचाना और उनके नाम तथा थोड़े बहुत परिचय बताये। इन परिचयों में तीन चार ही गलत थे। हम लोग दो रोज तक रामनगर रहे और बालक के कथन की पूरी तरह परीक्षा करते रहे। अन्त में हर किसी को यह विश्वास कर लेना पड़ा कि यह लड़का पूर्वजन्म का रामधन कहार ही है। दुख की बात है कि वह बालक इस वर्ष स्वर्गवास कर गया।

उपरोक्त घटना का बारीकी के साथ निरीक्षण करने पर कुछ बातों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है एक तो यह कि जितने भी पुनर्जन्म संबंधी परिचय मिलते हैं वे प्रायः बहुत दूर के नहीं होते। जहाँ तक हो सकता है पूर्वजन्म के स्थान के करीब में ही जन्म लेता है क्योंकि मृत आत्मा प्रायः उसी वातावरण को पसंद करती है और इधर उधर से चक्कर काटकर प्रायः अपने परिचित क्षेत्र या उसके निकटवर्ती स्थान में ही रहना चाहती है। दूसरी बात यह कि विचारधारा और सोसायटी भी उसे पूर्वजन्म जैसी ही ठीक प्रतीत होती है। रामधन कहार और बुली राजपूत के परिवार की आर्थिक, सामाजिक और रहन सहन संबंधी व्यवस्था प्रायः एक सी ही थी। यह भी देखने में आया है कि साधारणतः लिंग का परिवर्तन भी नहीं होता। स्त्री और पुरुष पुनर्जन्म में भी प्रायः अपने जैसे लिंग ही धारण करते हैं; किसी गड़बड़ी के कारण यदि परिवर्तन हो जाता है तो उस निकट वाले जन्म में भी वह आपके पूर्वजन्म के लिंग के स्वभावों को पूरी तरह भुला नहीं पाता। स्त्री स्वभाव के पुरुष और पुरुष स्वभाव की स्त्रियाँ हमें कभी कभी दिखाई देती हैं। हो सकता है कि पूर्वजन्म में उनका लिंग इस जन्म के विपरीत रहा हो।


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