आ देवानाम भवः केतुरग्ने। -ऋग्. 3।1।17
केवल श्रेष्ठ व्यक्ति ही जनता के नेता बनें।
चरित्रहीन लोगों के हाथों में नेतृत्व न पहुँचने दो।