गायत्री परिवार के सम्बन्ध में

July 1961

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(1) परिस्थितियों और आवश्यकताओं के कारण गायत्री परिवार की गतिविधियों में कुछ हेर फेर करने पड़ रहे हैं। सदस्य गण इन्हें नोट कर लें

(2) गायत्री परिवार की कुछ समय पहले बहुत शाखायें थीं और बहुत सदस्य थे। पर उनमें से अब अनेकों शिथिल हो गये हैं। अनेकों की कोई सूचना नहीं मिल रही है। इसलिए पुराने शाखा तथा सदस्य रजिस्टर रद्द किये जा रहे हैं। जो सक्रिय है उनका नये सिरे से संगठन किया जा रहा हैं।

(3) सदस्य दो प्रकार के होंगे (1) उपासक (2)सक्रिय। ‘उपासक सदस्य’ वे होंगे जिनका कार्यक्रम अपनी निज की उपासना तक ही सीमित है। ‘सक्रिय सदस्य’ वे होंगे जो अपनी निज कि साधना के अतिरिक्त दूसरों को धर्म प्रेरणा देते रहने का उत्तरदायित्व भी निभाएँगे। इस समय जहाँ शाखाएँ सजीव हैं वे अपने सदस्यों से उनकी वर्तमान भावनाओं और गतिविधियों का पता लगावें और तदनुसार उपासकों और सक्रिय सदस्यों के पूरे पते समेत सूची भेज दे। इसी सूची के आधार पर शाखाओं के तथा सदस्यों के नये रजिस्टर बनाये जावेंगे।

(4) भविष्य में गायत्री परिवारों के पदाधिकारियों के चुनाव नहीं हुआ करेंगे। सक्रिय सदस्य और उपासक मिल जुलकर सत्संगों तथा स्थानीय आयोजनों की व्यवस्था किया करेंगे। प्रत्येक सक्रिय सदस्य एक स्वतंत्र शाखा माना जाएगा। साथ ही उसका कर्तव्य यह भी होगा कि अन्य सक्रिय सदस्यों के साथ मिल जुलकर कार्य करे और संगठन को मजबूत करे। चुनाव में पद प्राप्ति के कारण जो रागद्वेष बढ़ता है उसका अन्त करना आवश्यक है।

(5) सक्रिय सदस्य कम से कम पाँच उपासकों को प्रेरणा देते रहने का उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लेंगे। और अपनी तथा अपने से सम्बन्धित पाँच उपासकों की साधना का पूरा विवरण छः-छः महीने बाद भेजा करेंगे। चैत्र सुदी 15 तथा आश्विन सुदी 15 को यह छमाही रिपोर्ट मथुरा भेजनी चाहिए। मासिक रिपोर्ट न भेजी जाय।

(6) प्रत्येक सदस्य को (1) आत्म सुधार (2) आत्म निर्माण (3) आत्म विकास इन तीन संग्रह किये बिना न अपना भला हो सकता है और न दूसरों की सेवा।

(7) जब हमारा निज का आगामी कार्यक्रम कठोर साधनात्मक है। भाषणों के लिए कही जाना हमारे लिए शक्स न होगा। इसके लिए कोई आग्रह न किया जाय।

(8) तपोभूमि में अब प्रचारात्मक नहीं, साधनात्मक वातावरण रहेगा। साधना की दृष्टि से ही लोग यहाँ आया करेंगे। आत्म निर्माण की व्यवहारिक शिक्षा व्यवस्था का भी प्रबन्ध रहेगा।

(9) जिन्हें कभी तपोभूमि पधारना हो वे अपने आने और जाने की पूर्व सूचना देकर स्वीकृति प्राप्त करके ही आवे। सीमित संख्या में ही लोगों से भली प्रकार खुले मन से विचार विनियम संभव होता है। इसलिए अधिक भीड़ एक समय इकट्ठी न होने देने की दृष्टि से ही यह व्यवस्था बनाई गई है।

(10) चारों आत्मदानी तपोभूमि से चले गये है। वे अपना-अपना स्वतंत्र कार्य करेंगे। -श्रीराम शर्मा आचार्य,


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