सत्येश्वर प्रभु

July 1961

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ॐ कदु प्रचेतसे महे वचो देवाय शस्यते।

सामवेद पू० ३.१.४.२

सत्येश्वर की स्वल्प भक्ति भी, देती सुफल महान।

तन्मय होकर अत: करें हम, प्रतिपल उसका ध्यान ।।

भक्ति हमारी लघु हो लेकिन, वह आराध्य महान ।

चेतन घन सद ज्ञान मूल है, गुण गौरव की खान।।

जीवन उन्नत करना उसका, क्षण भर का भी ध्यान।

तन मन रोमांचित कर देता, स्मृति सरिता मे स्नान ।।

उसकी करुणा निर्भर के कण, करते रस संचार।

करती विपुल विभव की वर्षा, उसकी दया अपार।।

उसकी आशीष पयस्विनी में, अवगाहन सुख सार।

उसकी विमल ज्ञान की धारा है, संजीवन आधार ।।

उसकी वरदा सुख वर्षा की, स्नेह सुधामय धार।

तन,मन,आत्मा शीतल करती, भरती शांति अपार ।।

उसकी विमल भक्ति में कुछ भी, कमी न पलभर ध्यान बँटे।

उसके नियमित आराधन से, मन न हटे, इच्छा न घटे।।

बढ़े विवेक, विनय, मद्विघा, शक्ति, प्रीति, नय, नीति बढ़े।

सत्यभक्त के यत्न सफल हो, अक्षय सद्गति सुमति बढे।।

यज्ञदत्त 'अक्षय'


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