“मैंने भूगोल सीखा, बीजगणित का स्वाद लिया भुमिति का ज्ञान प्राप्त किया, भूगर्भ विद्या भी घटी, किन्तु इन सबका परिणाम? मैंने इनसे क्या तो अपना भला किया और क्या अपने आपस वालों का? मैंने यह सारा ज्ञान क्यों लिया? मुझे इससे क्या फायदा हुआ? एक अंग्रेज विद्वान (हक्सले) ने शिक्षा के सम्बन्ध में कहा है-
“वास्तविक शिक्षा उस मनुष्य ने पाई है जिसका शरीर उसके काबू में रहता है और वह शरीर सौंपे हुए काम को आराम और आसानी से पूरा करता है। सच्ची शिक्षा उसे मिली कहनी चाहिये कि जिसकी बुद्धि शुद्ध है, शान्त है और न्याय परायण है। उस मनुष्य ने सच्ची शिक्षा ली है जिसका मन प्राकृतिक नियमों से पूर्ण है और इन्द्रियाँ उसके वश में हैं। जिसकी अंतःवृत्ति विशुद्ध है, जो बुरे आचरण को धिक्कारता है और सबको अपने समान मानता है। ऐसा मनुष्य सही रूप से शिक्षित माना जायगा।”
जो सच्ची शिक्षा की यह परिभाषा हो तो मुझे कसम खाकर कहना चाहिये कि ऊपर मैंने जिन शास्त्रों का उल्लेख किया है वे अपने शरीर या अपनी इन्द्रियों को वश में मेरे किसी काम नहीं आये।”
—महात्मा गाँधी।
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