(प्रो. इन्द्रसेन जी एम. ए. पी. एच. डी.)
एक बार लन्दन के एक बड़े होटल में इंग्लैंड के तीन महान विचारक उपस्थित थे। उसी अवसर पर भारत वर्ष के एक प्रसिद्ध लेखक तथा विचारक भी निमंत्रित थे। बातों ही बातों में एक बार प्रसंग चल पड़ा-विवाह और उसकी सफलता। एक ने यह भी कहा कि हर कोई अपने अपने व्यक्तिगत अनुभव बताये। एक ने कहा—”मेरी स्त्री के बीच हमारे विवाहित जीवन में 3-4 बार बड़ी गम्भीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई थीं। बस इससे अधिक मैं कुछ नहीं कहना चाहता।” दूसरे ने कहा—”मेरा मेरी स्त्री से वचन हो रहा है कि मैं उसके जीवन-काल पर्यन्त अपने विवाहित सम्बन्ध में कुछ न कहूँगा।” तीसरे ने भी कुछ इसी प्रकार का क्षोभजनक उत्तर दिया। जब तीनों अंग्रेज विचारक कह चुके तो अपने भारतीय अतिथि को सम्बोधित करके बोले—”अच्छा भाई अब तुम भी बतलाओ आप लोग अपने विवाहों को कैसे सफल बनाते हो?”
भारतीय विचारक ने कहा, “हमारे वहाँ वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध में स्त्री-पुरुष की मौलिक धारणा आपके यहाँ से सर्वथा भिन्न होती है। हमारे यहाँ स्त्री पुरुष अपने अपने अधिकारों की भावना को लेकर विवाह में प्रविष्ट नहीं होते, बल्कि कर्त्तव्य की भावना को लेकर। यह भारत की परम्परा का साँस्कृतिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण है। वर्तमान समय में अधिकार भावना वहाँ भी बढ़ रही है और उसके दुष्परिणाम वहाँ भी देखने में आ रहे हैं।”
इस उत्तर ने उन अंग्रेज विचारकों को चकित कर दिया। उन्होंने इस भारतीय उच्च आदर्श की भूरि भूरि प्रशंसा की।