समय का दुरुपयोग

June 1946

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(श्री सेठ अमरचन्द जी नाहटा)

जीवन बड़ा अमूल्य है, उसका निर्माण समय के छोटे-छोटे क्षणों-परमाणुओं के द्वारा होता है जो जीवन का सदुपयोग करना चाहते हैं उन्हें समय के इन छोटे-छोटे परमाणुओं क्षणों का सदुपयोग करने के लिए सावधान रहना चाहिये। हर एक क्षण के साथ जीवन की अमूल्य सम्पत्ति कम होती चली जा रही है, यह सोचकर समय के स्वल्प काल का उचित उपयोग होना चाहिये।

शरीर यात्रा के साधारण कार्यों के अतिरिक्त हमारा कुछ समय नित्य नियमित रूप में परमार्थ के कामों में भी लगना चाहिये। अध्यात्मिक साधना एवं लोक सेवा के लिए भी प्रतिदिन कुछ समय नियत रखना आवश्यक है। “परमार्थिक कार्यों के लिये समय नहीं मिलता।” यह कथन बहाने बाजी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। मनुष्य की इच्छा जिस ओर होती है, उस दिशा में कार्य करने के लिये समय निकल ही आता है। यदि दिन भर में 20 काम करने में हों और उनमें से यदि पाँच-पाँच मिनट बचा लिये-उन कामों को थोड़ा जल्दी कर लिया जाय तो काफी समय बच सकता है और उसका उपयोग परमार्थ के कार्यों में किया जा सकता है।

आम तौर से लोगों का अधिकाँश समय व्यर्थ की गपशप, आलस्य, प्रमाद, फैशन परस्ती, आदि में खर्च हो जाता है। कोई नियम कार्यक्रम एवं दिनचर्या की व्यवस्थित प्रणाली न होने के कारण भी समय का बहुत भाग निरर्थक नष्ट होता रहता है, यदि उसे बचा लिया जाय और फिर किन्हीं सत्कर्मों में लगाया जाय तो जीवन का महत्वपूर्ण सदुपयोग हो सकता है।

दैनिक जीवन के अनुभव-


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