ब्रह्मचर्य-वन्दना

June 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ब्रह्मचारी प्रभु दत्त शास्त्री

(1)

ओ तेजपुञ्ज! ओ दिव्यरुप!

ओ शक्ति-सुधा के अनुपम स्रोत।

ओ सौंदर्य निराले सुखमय।

ओ जागृत जीवन की ज्योत!

ओ अनन्त के परिचायक!

ओ- अमर-भावनाओं के मूल!

ओ अद्भुत! ओ भव्य, सुगन्धित-

ओ मानुष उपवन के फूल!

देह-भवन के उज्ज्वल दीपक,

फणि की मणि वैदूर्य ललाम!

जग में केवल सार रूप ओ-

ब्रह्मचर्य है तुझे प्रणाम॥

(2)

जिस तनु में आवास करे तू

होवे वह सुख से भरपूर।

रोग, शोक, चिन्ता, भय, जड़ता

ये सब उससे रहते दूर।

उद्यम, साहस, क्रिया शक्ति और

पटुता का उस में भण्डार।

भरा रहे नित, कभी न होवे,

उसकी जीवन रण में हार।

प्रबल निराशा औ उद्वेगों-

का है यह भीषण संग्राम।

इस में तू आधार रूप ओ,

ब्रह्मचर्य है तुझे प्रणाम।

(3)

जिसने तुझे न जाना अथवा

किया नहीं तेरा सम्मान।

कि वा जान बूझ कर भी जो,

तुझ से वञ्चित रहा अजान॥

उसने जग में आकर के भी,

पाकर सब वैभव पर्याप्त।

पाया कुछ भी नहीं वृथा ही,

जीवन लीला करी समाप्त॥

तेरे बिना विभव सब फीके,

सकल साधनायें हैं बाम।

साधन मुख्य जगत में तू ओ,

ब्रह्मचर्य है तुझे प्रणाम॥

(4)

इन्द्रिय संयम द्वारा जिसने,

तेरा सेवन किया यथार्थ।

सुगम रीति से साध सका वह,

अपना स्वार्थ और परमार्थ॥

तुझ अमूल्य निधि को सञ्चित कर,

जिसने निज भण्डार भरा।

उसका जीवन पुष्प निरन्तर,

नित नूतन है हरा भरा॥

तू है अक्षय कोष सुखों का,

ऋद्धि सिद्धियों का तू धाम।

तेरी समता नहीं कहीं ओ,

ब्रह्मचर्य है तुझे प्रणाम॥

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118