संकट से बचने का उपाय

June 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार सं.-’कल्याण’)

इस समय सम्पूर्ण भारत में ही नहीं, संसार भर में अन्न संकट छाया हुआ है। वायसराय महोदय ने हमारे देशवासियों से कहा है कि इस संकट के समय में महात्मा गाँधी और श्री जिन्ना साहब के बताये हुए मार्ग पर चलें। यथा साध्य कम खाकर काम चलायें। अमीर गरीब त्याग करें। श्री गाँधी जी ने हमें अन्न की आवश्यकता को कम करने की सलाह दी है। उनके अनुसार अन्न के बदले आलू और साग सब्जी खाये जहाँ जल की सुविधा हो वहाँ वनस्पति पैदा करें। तिलहन, तेल इत्यादि की रफ्तानी रोक दी जाय बगीचों में खेती हो। सब मिलकर कार्य करें।

उपर्युक्त सभी बातें हित की हैं। यह सब होते हुए भी एक ऐसी आवश्यक बात है जिसके हुए बिना सफलता सम्भव नहीं। वह है श्री भगवान् की आराधना। जो संकट आ रहा है, वह मानव के पाप का परिणाम है और इसमें जिसका कम या ज्यादा पाप है, उस पर उतना ही संकट कम या ज्यादा आवेगा।

भगवान पर विश्वास, भगवद् साधना तथा भगवान की प्रसन्नता के लिये किए जाने वाले स्वधर्माचरण से बुद्धि शुद्ध होती है और बुद्धि के शुद्ध होने पर बुरे कर्मों से मन स्वतः ही हट जाता है। भगवान पर विश्वास न रहने से और धर्म पर श्रद्धा न होने से ही, और पापों से परिणाम रूप दुःख-दुर्गति, दुर्भाग्य की अनिवार्यता पर विश्वास न रहने के कारण ही आज लोग केवल इहलौकिक व्यक्तिगत सुख और इन्द्रिय चरितार्थता के लिए कामोपभोग परायण होकर मनुष्य असुर बन गए हैं। जब तक पापों के लिये मन में घोर पश्चाताप उत्पन्न नहीं होता तब तक वर्तमान संकट से बचा भी नहीं जाता।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: