कभी न फलने फूलने वाले पेशे

June 1946

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

जब आप अपनी जीविका का प्रश्न हल करने के लिए, अपने लिये एक पेशे का चुनाव करने निकलें, तो आपको कई आवश्यक तत्व स्मरण रखने होंगे। आप जिस पेशे का चुनाव करने जा रहे हैं, उसका समाज में कैसा आदर है? दूसरे लोगों की उसके प्रति क्या, कैसी भावना है? वे उसे उत्तम समझते हैं या निकृष्ट? हर पेशे का समाज में कुछ विशिष्ट स्थान है। जन साधारण ने उसके विषय में एक निश्चित धारणा बना रखी है।

हमारा अनुभव है कि वे पेशे अधिक नहीं फलते फूलते जिनमें हमें दूसरे का हृदय दुखाना पड़ता है दूसरे के साथ अनीति, निर्दयता एवं अमानुषिकता का व्यवहार करना पड़ता है, या सीनाजोरी से दूसरे के अंतःकरण में प्रहार होता है। मुई खाल की श्वास से लोह भस्म होता है, फिर, जीवित प्राणी के दुःखी हृदय से निकली हुई सिसक, रोदन, हाहाकार से क्या कुछ नहीं हो सकता?

हमारा एक मित्र जेलर है—ब्राह्मण, प्रतिष्ठित, सुयोग्य एवं अनुभवी गत पन्द्रह वर्ष से जेल के अध्यक्ष हैं। कैदी उनके नाम मात्र से काँपते हैं। आवाज सुनते ही सहम उठते हैं। सब पर आतंक छाया रहता है। समाज में सफल गिने जाते हैं किन्तु गृहस्थ जीवन कदाचित सब से दुखी है। यौवन में ही चार पुत्रियों को छोड़कर धर्मपत्नी विदा हुई। पुत्र की सदैव कामना अतृप्त ही रही। स्वयं बीमार रहते चले आ रहे हैं। आये दिन कुछ न कुछ विपदा चलती रहती है। बड़े भ्राता जी का देहान्त होने से सम्पूर्ण कार्य भार उनकी भी गृहस्थी का बोझ सर पर आ पड़ा है। एक विवाहिता पुत्री का स्वर्गवास हो गया है और स्वयं बहुत बीमार है। दुःख का कारण कैदियों की मूक आहें हैं। उनका कोसना, कलपना, गालियाँ देना अशुभ वाणी का उच्चारण—इन सभी बातों का अदृश्य प्रभाव हमारे इन मित्र पर अलक्षित रूप से पड़ता रहा है।

हमारे एक मित्र पुलिस में थानेदार है। थानेदार साहब काफी मालदार हैं किन्तु अभी हाल ही में उनकी युवती पत्नि, दो पुत्र, तीन पुत्रियों को छोड़कर आनन फानन चल बसीं। घर में कोई न रहा तो बड़े पुत्र का विवाह किया। विवाह कराने गये कि विवाह से आठ दिन पूर्व माता का स्वर्गवास हो गया। पुत्र का विवाह बुरी तरह सम्पन्न हुआ। अब उन्हें सब कुछ सूना-सूना प्रतीत होता है।

इसी प्रकार से अनेक उदाहरण हम दे सकते हैं जिनमें कभी भी सुख न मिला। पुलिस की ज्यादती, कठोर यंत्रणाएं, सजाएँ, छीना-झपटी, लूट खसोट सब कोई जानता है। पुलिस के सिपाहियों को हर कोई कोसता है। इसी प्रकार डॉक्टर को देखना अशुभ समझा जाता है। वकील, दलाल, वैश्या—इनके पेशे झूठ, स्वार्थ, छल, कपट, बेईमानी पर अवलम्बित हैं। पग-पग पर इन्हें आत्म स्वतन्त्रता, अन्तरात्मा की निष्ठा, सत्यता का हनन करना पड़ता है। अतः कोई भी फलता फूलता नहीं दीखता।

इनके विपरीत उन पेशों को लीजिये जिनके साथ संसार की सद्भावनाएँ हैं। अध्यापक, पुजारी, पादरी, लेखक, सम्पादक, प्रकाशक—ये ऐसे पेशे हैं, जिनसे समाज की भावनाओं को, उनके स्वत्व को हानि नहीं पहुँचती, समाज इन्हें जनता का हितैषी समझता है। प्रत्येक का आशीर्वाद इन पेशे वालों के साथ होता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय नेता, समाज सुधारक, प्याऊ पर जल पिलाने वाला, कृषक, मजदूर, सद्गृहस्थ से पास पड़ौस, जन समुदाय की भलाई होती है। प्रत्येक इन्हें हृदय से प्यार करता और शुभ कामनाएँ प्रदान करता है। सद्भावनाओं के प्रताप से ये फलते फूलते हैं। कम आय में भी काफी बरकत रहती है।

दूसरों की उत्तम या अशुभ बातों का प्रभाव सदैव पड़ता है। यह तत्व कभी न भूलिये। जिन-जिन पेशों में दूसरे का मन दुखाया जायगा, दूसरों की आहें पड़ेंगी, वे ही स्वार्थी पेशे वाले रोते चिल्लाते अतृप्त दिखाई पड़ेंगे। ऐसे दुकानदार जो कूड़ा करकट मिलाकर चीजें बेचते हैं, या कम तोलते हैं, सदैव घाटे में ही रहते हैं। न्याय, ईमानदारी, प्रेम तथा पसीने की सच्ची कमाई ही फलती है। सूदखोर बनिये, काबुली या कसाई आजतक कभी आनन्दित नहीं हुए हैं। ईर्ष्या, जलन, स्वार्थ, बेईमानी, खुदगर्जी जितनी ही किसी पेशे में घुसती है, उतनी ही अशान्ति रहती है। मैंने स्वयं देखा कि हरे वृक्ष काटने वाले, कसाई को गाय, बकरे, मुर्गी, अण्डे, कबूतर बेचने वाले, मछली माँस के व्यापारी, झूठ बोल-2 कर घर भरने वाले कभी फले फूले नहीं हैं। वे पति जो पत्नि पर अत्याचार करते हैं। वे आफीसर जो माहततों पर गुर्राते हैं, वे कर्मचारी जो सहयोगियों पर दुर्व्यवहार करते हैं, कभी सुखी नहीं दीखते। कृषकों पर निर्दयता करने वाले जमींदारों के घर मैंने इट-इट होते देखे हैं। विचार कर देखो कि तुम्हारा व्यवसाय किसी का जी तो नहीं दुखाता। स्मरण रखो, सात्विक जीविका कमाने वाले ही फूलते फलते और सुखी रहते हैं।


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