(श्री कन्हैयालाल जी पाण्डेय, उदयपुर)
ईश्वर की प्रार्थना करने वालों को हम किन्हीं वस्तुओं की याचना करते हुए सुनते हैं। जिन्हें जिस वस्तु का अभाव है वे उस वस्तु की याचना करते हैं। इस याचना के समय वे इस बात को सर्वथा भूल जाते हैं कि ईश्वर निष्पक्ष न्यायकारी एवं समदर्शी है।
आलसी मनुष्य जुए या सट्टे के लिए मनौती मनाते हैं, चोर और डाकू अमुक भेंट चढ़ाने की शर्त पर ईश्वरीय सहायता चाहते हैं, निरुद्यमी विद्यार्थी कुछ भोग प्रसाद चढ़ाकर अपना काम बना लेना चाहते हैं, जिसे देखिये वह ईश्वर की गिरह काटने की फिक्र में है। उसे उल्लू बना अपना काम बना लेना चाहता है। खुशामद भरी चिकनी चुपड़ी स्तुतियाँ कर या चन्द पैसों का भोग प्रसाद देकर लोग ईश्वर को भुलावे में डालना चाहते हैं कि वह उनकी इच्छाओं की झटपट पूरा कर दे।
इस तरह की आशा रखने वाले व्यक्ति नादान हैं। उन्हें जानना चाहिये कि परमात्मा निष्पक्ष, न्यायकारी एवं समदर्शी है। वह किसी की खुशामद स्तुति या घूँस की परवा न करके निष्पक्ष न्याय करता है। कर्म का यथावत फल देना उसका काम है सो वह अवश्य ही देता है। निरुद्यमी को दरिद्रता, परिश्रमी को समृद्धि, धर्मात्मा को आनन्द और पापी को दण्ड देने में वह कभी किसी की रियायत नहीं करता।
परमात्मा की सच्ची प्रार्थना, उसके नियमों पर चलना है, जो उद्योगी और धर्मात्मा हैं उन्हें ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती हैं।