इन्द्रियों के गुलाम नहीं, स्वामी बनिए!

December 1945

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जो आदमी केवल इन्द्रिय सुखों और शारीरिक वासनाओं की तृप्ति के लिए जीवित है और जिस के जीवन का उद्देश्य ‘खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ’ है। निस्संदेह वह आदमी परमात्मा की इस सुन्दर पृथ्वी पर एक कलंक है, भार है। क्योंकि उसमें सभी परमात्मीय गुण होते हुए भी वह एक पशु के समान नीच वृत्तियों में फंसा हुआ है। जिस आदमी में ईश्वरीय अंश विद्यमान है, वही अपने सुख से हमें अपने पतित जीवन को दुख भरी गाथा सुनाता है!! यह कितने दुख की बात है। जिस आदमी का शरीर सूजा हुआ, भद्दा लज्जा युक्त दुखी और रुग्ण है व इस सत्य की घोषणा करता है कि जो आदमी विषय वासनाओं की तृप्ति में अंधा धुँध, बिना आगा पीछा देखे, लगा रहता है वही शारीरिक अपवित्रताओं, यातनाओं को सहता है।

वास्तव में आदर्श मनुष्य वही है जो समस्त पाशविक वृत्तियों तथा विषय वासनाओं को रखता हुआ भी उनके ऊपर अपने सुसंयता तथा सुशासक मन से राज्य करता है, जो अपने शरीर का स्वामी है, जो अपनी समस्त विषय वासनाओं की लगाम को अपने दृढ़ तथा धैर्य युक्त हाथों में पकड़ कर अपनी प्रत्येक इन्द्रिय से कहता है कि तुम्हें मेरी सेवा करनी होगी न कि मालिकी। मैं तुम्हारा सदुपयोग करूंगा दुरुपयोग नहीं। ऐसे ही मनुष्य अपनी समस्त पाशविक वृत्तियों तथा वासनाओं की शक्तियों को देवत्व में परिणित कर सकते हैं, विलास मृत्यु है और संयम जीवन है। सच्चा रसायन शास्त्री वही है जो विषम वासनाओं के लोहे को आध्यात्मिक तथा मानसिक शक्तियों के स्वर्ण में पलट लेता है।


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