(योगी अरविन्द घोष)
जो अशुभ है उससे मुक्त होकर उसके संसर्ग से अपनी आत्मा को पवित्र बनाकर हमें उसकी विद्युत शक्ति से परिचालित होकर इस संसार में प्रकाश फैलाने के लिए, उसके ज्योति की किरणों को संसार में बाँटने के लिए आधार मंत्र (ॐ नमो) का काम करना होगा। जिस प्रकार एक ही सुरंग पूर्ण शक्ति युक्त होकर घोर रव के साथ पर्वत माला को विदीर्ण कर देता है, उसी प्रकार ईश्वर की ज्योति से सम्पन्न हमें संसार की सभी अशुद्धताओं और कुसंस्कारों को दूर करना होगा। इस तरह एक-एक मनुष्य साधना में सिद्ध होकर सैकड़ों और हजारों प्राणियों के बीच ज्ञान व शक्ति की ज्योति फैलाकर उनमें से अविद्या को दूर करेगा और उनका उद्धार करेगा। एक साधक की शक्ति के प्रभाव से सहस्रों जन भागवत धर्म में दीक्षित होंगे और सच्चिदानन्द के अगाध सागर में निमग्न होंगे।
मानव समाज के उद्धार का केवल एक ही मार्ग, एक ही उपाय और एक ही पंथ है, जिसकी व आज तक उपेक्षा करता आया है। उस मार्ग का नाम है शक्ति साधना और आत्मोपलब्धि।
प्रकृति का ज्ञान अवगम्य करके भी यदि प्रकृति की सहायता से आत्मा की मुक्ति नहीं हो पाती तो निश्चय जानिये कि उस मार्ग से जीवन की सफलता नहीं प्राप्त हो सकती। इसके लिए हमें पुनः किसी मार्ग का अनुसरण करना होगा, उसी पथ पर लौटना होगा, जहाँ से हमें ईसा की पवित्रता व पूर्णता, मुहम्मद का आत्म-विश्वास और आत्म-समर्पण, श्री चैतन्य देव का प्रेम व आनन्द, रामकृष्ण परमहंस का संसार में सभी धर्मों का समन्वय तथा एकीकरण, व अति मानव तत्व की प्राप्ति होगी।
इन सब भावों को एकत्र करके एक प्रबल स्रोत बहाना होगा। पतित पावनी, सकल मलहारिणी पवित्र सलिला भागीरथी गंगा की भाँति नाशवान इस संसार तथा अर्धमृत इस मानव जाति के बीच में इसे प्रवाहित कर देना होगा। जिस प्रकार राजा भागीरथ विष्णुपाद स्पर्श पवित्रा इस गंगा के स्पर्श से अपने पितरों को मुक्त करा कर अनन्त धाम में पहुँचा सके, उसी प्रकार हम भी इस नवीन धर्म के पवित्र स्रोत को मानव जाति के बीच में प्रवाहित करके उनकी आत्म-शुद्धि करके उनकी आत्मा का उद्बोधन करावेंगे। निश्चय मानो कि इस पृथ्वी पर एक पुनः स्वराज्य की स्थापना होगी।
पर इतने से ही लीला का यह उद्देश्य नहीं सिद्ध हो सकता है। इसी लीला के लिए ही भगवान प्रत्येक युग में अवतार ग्रहण करते हैं। वह लीला क्या है? मानव जाति की दिन प्रतिदिन शनैः शनैः उन्नति के पथ पर पहुँचाना समुच्चय की दैवी शक्ति तथा तूरीय के विपुल आनन्द द्वारा मनुष्य को देवता की भाँति बनाना ही इस लीला का उद्देश्य है। भगवान अनन्त युग से विविध प्रकार के रूप धारण करके इस प्रकार की लीला करते आ रहे हैं। मानव संसार के बीच में उनकी इस प्रकार की लीला सदा व सर्वदा अविच्छिन्न रूप से होती चली आ रही है। उन्होंने स्वर्ग को मर्त्य बना दिया है और इस पृथ्वी पर सहस्रों धारा द्वारा अमृत की वर्षा की है। जब तक पृथ्वी और स्वर्ग एक न हो जायं हमें शान्ति नहीं मिल सकती। जब तक इस उद्देश्य की सिद्धि न हो जाय, हमारी साधना पूर्ण व चरितार्थ नहीं हो सकती।