भ्राँति से मुक्ति के उपाय

December 1945

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(श्री डॉ. दुर्गाशंकर जी नागर संपादक ‘कल्पवृक्ष’)

बुद्धि को तर्क की भूलभुलैयों में डालने से भ्राँति और संशय दूर नहीं होते। आप प्रश्न करेंगे कि क्या भ्राँति रहित कोई प्रदेश है? हाँ अवश्य है, और वह है तुम्हारी अन्तरात्मा। अन्तरात्मा में भ्राँति का सर्वथा अभाव है। अन्तरात्मा में प्रवेश करने से भ्राँति रहित स्थान का अनुभव होता है। भ्राँति वाले विचारों को तिलाँजली दो और शुद्ध शुभ विचारों का सेवन करो। प्रयत्नपूर्वक श्रद्धा सहित उन्हीं में रमण करो। यह अन्तरात्मा में प्रवेश करने का प्रथम सोपान है।

इन्द्रिय और बुद्धि के व्यापार बन्द करके प्रेरक आत्मा में जो स्थिर हो चुके हैं, उन्हीं को आत्म प्रतीति होती है। अतः अपने में कभी भी विक्षेप, उद्विग्नता, भ्राँति का प्रवेश न होने दो। सदा यह समझो कि ईश्वर की सदैव तुम्हारे ऊपर कृपा है। वे आदि पुरुष सदैव तुम्हारे ऊपर सुख शान्ति की वर्षा करते हैं। उच्च स्वर से कहो- “मैं चैतन्य स्वरूप आत्मा हूँ।” इन दिव्य शब्दों को प्रातः काल या सायंकाल स्मृति पट पर अंकित कर लो। इस सत्य की भावना को हृदय में आरुढ़ करने से तुम्हारा जीवन सुख शान्तिमय हो जायगा।


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