धन की अनावश्यक तृष्णा

December 1945

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले.- डॉ. हीरालालजी गुप्त, बोगूसराय)

आज कल पैसे को अत्यधिक महत्व दिया जाने लगा है। जिसे देखिए वह पैसे के पीछे बेतहाशा दौड़ रहा है। भिक्षुक और धन कुबेर अशिक्षित और विद्वान सभी को पैसे की चाह एक समान है। वास्तविक आवश्यकता के कारण नहीं वरन् तृष्णा के कारण, यह लालसा उन्हें सताती है। धन प्राप्त करने के लिए लोग उचित और अनुचित हर एक तरीका अपनाने को तैयार रहते हैं। मधुमक्खी की तरह संचय और कंजूसी को अपनी जीवन नीति बनाकर पैसे की मृग तृष्णा में मारे-मारे फिरते हुए लोगों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग में, टका ही धर्म, कर्म और परमपद बन गया है।

यद्यपि जीवन निर्वाह के लिए एक नियत मर्यादा में पैसे की हर किसी को आवश्यकता है। एक नियत सीमा तक धन का उपार्जन और संचय करना भी चाहिए। पर उसका अति लोभ अनावश्यक है। सुर दुर्लभ मानव शरीर बड़े भाग्य से मिलता है इसका एक-एक क्षण अमूल्य निधि के समान है। इसलिए समय का सदुपयोग, आत्मोन्नति, सेवा, परोपकार, स्वाध्याय, सत्संग, ईश्वर आराधना, सरीखे सत्कर्मों में करना चाहिए।

जो लोग लालच के मारे हर घड़ी धन के लोभ में फँसे रहते हैं वे संगीत, साहित्य और कला के सौंदर्य से वंचित रह जाते हैं। विश्व के कण-कण में सौंदर्य और आनन्द भरा हुआ है जिसका आध्यात्मिक दृष्टि से निरीक्षण करने पर मनुष्य को अपार तृप्ति और सुख शान्ति की उपलब्धि हो सकती है। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि चाँदी, ताँबे के टुकड़ों के लिए लोग उन सब तृप्ति दायक आनन्दों से वंचित हो जाते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118