उत्तम-उत्तम संस्थाओं की इतनी आवश्यकता नहीं, विस्तृत धन और स्वर्ण राशियों की आवश्यकता नहीं, असीम पौरुष और बलवान लेखनी की आवश्यकता नहीं बल्कि आवश्यकता है मनुष्यता परिपूर्ण मनुष्य की।
-महादेव गोविन्द रानाडे।
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सत्य धर्म का मतलब ईश्वर शब्द पर विश्वास की अपेक्षा भलाई पर विश्वास करना है।
-स्वामी रामतीर्थ।
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