प्रार्थना अमोघ अस्त्र है।

December 1945

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ले.- श्री प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी, रेवाड़ी

जिस हृदय में जितनी ही विश्वास की मात्रा अधिक है वह उतना ही अधिक धनी व बलवान् है। विश्वास में वह शक्ति है जो अतर्क्य कार्य को भी कर दिखाती है। महात्मा ईसा के शब्दों में यदि हम में राई भर विश्वास हो तो हम पर्वत को उठा सकते हैं। किन्तु विश्वास जैसी अमूल्य निधि के अधिकारी, उस प्रभू के प्यारे कोई विरले ही जन होते हैं। निश्चय ही वे अहोभाग्य हैं। उनकी संगति में आने से अविश्वासी हृदयों में भी परिवर्तन हो जाता है। हाँ, विश्वास भी प्राप्त किया जा सकता है और वह मिलता है- प्रार्थना से।

महात्मा ईसा ने बाइबिल में प्रार्थना के विषय में कहा है कि-

“जो प्रभु की प्रार्थना में आँसू भेंट चढ़ायेगा उसे प्रभु की प्रसन्नता का प्रसाद मिलेगा, और जो गद्-गद् होकर उसके आगे रोयेगा, वह प्रभु के मन्दिर से निश्चय पूर्वक आनन्द में विह्वल हुआ अपनी आशा की पूर्ति लेकर लौटेगा।”

यदि हम अपने आत्मा के प्रति सच्चे रह कर निज कर्तव्य का प्रमाद रहित होकर यथावत् पालन करें और फिर भगवान् से अपनी शुभ अभिलाषा की पूर्ति के लिये प्रार्थना करें तो निश्चय हमारी प्रार्थना स्वीकार होगी। इसमें सन्देह का अवकाश किंचित् भी नहीं है। यह स्वयं करने की और परखने की बात है। हाँ, लगन और प्रयत्न, चिरकाल तक धैर्य पूर्वक बढ़ाना चाहिये। प्रार्थना निराशा की अँधेरी को सूर्य के प्रकाश के समान चमका देती है। प्रार्थना दुःख के ताप से झुलसे हुए हृदयों को, सूखी खेती को वर्षा के समान लहलहा देती है। प्रार्थना मृतक हृदयों को जीवित करने के लिए संजीवनी बूटी है।

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