कर्मकाण्ड भास्कर

॥ सर्वदेवनमस्कारः॥

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

देवपूजन के बाद सर्वदेव नमस्कार करना चाहिए। नमस्कार का उद्देश्य देव शक्तियों का सम्मान, उनके प्रति अपनी श्रद्धा का प्रकटीकरण तो है ही, अपने मन का, रुचि का झुकाव देवत्व की ओर करना भी है। हमारे मन में देवत्व से विपरीत अनर्थकारी आसुरी प्रवृत्तियों के प्रति भी झुकाव पैदा होता रहता है। उसे निरस्त करके पुनः कल्याणप्रद देवत्व के प्रति झुकाव- अभिरुचि पैदा करना भी एक पुरुषार्थ है। देव नमस्कार के समय ऐसे भाव रखे जाएँ।

नमस्कार में छः देव दम्पतियों का तथा विशेष सामाजिक कर्त्तव्यों का वहन करने वाले देव तत्त्वों का सम्मान, अभिनन्दन, अभिवन्दन करते हुए मानवता के प्रति नमन- वन्दन की प्रक्रिया को पूरा किया गया है।

१. विवेक को गणेश और उनकी पत्नी को सिद्धि- बुद्धि।
२. समृद्धि और वैभव को लक्ष्मीनारायण।
३. व्यवस्था और नियन्त्रण को उमा- महेश।
४. वाणी और भावना को वाणी- हिरण्यगर्भ।
५. कला और उल्लास को शची- पुरन्दर।
६. जन्म और पालनकर्त्री देव प्रतिमाओं को माता- पिता कहा गया है।

इन छः युग्मों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनकी उपयोगिता समझने- आवश्यकता अनुभव करने के लिए नमन- वन्दन किया जाए।

७. कुल देवता- अपने वंश में उत्पन्न हुए महामानव।
८. जीवन लक्ष्य को सरल बनाने वाले माध्यम -इष्ट देवता।
९. शासन- संचालक देवता।
१०. स्थान देवता- पंच, समाज सेवक।
११. वास्तु देवता- शिल्पी, कलाकार, वैज्ञानिक।
१२. किसी भी लोकमंगल कार्य में निरत परमार्थ परायण- सर्वदेव।
१३. आदर्श- चरित्र, सद्ज्ञान- साधनारत ब्राह्मण।
१४. प्रेरणा और प्रकाश देने वाले स्थान या व्यक्ति तीर्थ।
१५. मानवता की दिव्य चेतना- गायत्री। ये सब देव तत्त्व हुए।

ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः।
ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।
ॐ कुलदेवताभ्यो नमः।
ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः।
ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः।
ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः।
ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यस्तीर्थेभ्यो नमः।
ॐ एतत्कर्म- प्रधान नमः।
ॐ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु।

॥ षोडशोपचारपूजनम्॥

देवशक्तियों एवं अतिथियों के पूजन- सत्कार के १६ उपचार भारतीय संस्कृति में प्रचलित हैं। अपनी स्थिति तथा अतिथि के स्तर के अनुरूप स्वागत उपचारों का निर्धारण किया जाता रहा है। देवपूजन में दो बातें ध्यान रखने योग्य हैं- देवताओं को पदार्थ की आवश्यकता नहीं, इसलिए उन प्रसंगो में उपेक्षा एवं प्रमाद न बरता जाए। कोई सम्पन्न और सम्माननीय अतिथि अपने यहाँ आए तो ‘उन्हें क्या कमी ?’ कहकर उन्हें आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराने में उपेक्षा नहीं बरती जाती। जो है, उसे भावनापूर्वक, सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी ही सावधानी देवपूजन में रखी जाए।

देवताओं को पदार्थों की भूख नहीं है, पदार्थों के समर्पण द्वारा जो भावना, श्रद्धा व्यक्त होती है, देवता उसी से सन्तुष्ट होते हैं। यह ध्यान में रखकर अच्छे पदार्थ देकर देवताओं पर एहसान का भाव नहीं आने देना चाहिए। श्रद्धा- समर्पण को प्रमुख मानकर उसे बनाये रखना आवश्यक है। अभाववश पदार्थों में कमी रह जाए, तो उसकी पूर्ति भावना द्वारा हो जाती है।

पूजन के समय एक प्रतिनिधि पूजन करें, शेष सभी व्यक्ति भावनापूर्वक कार्यक्रम को सशक्त बनाएँ। पूजन के स्थान पर एक स्वयंसेवक रहे, जो पूजा उपचार का क्रम ठीक से क्रियान्वित करा सके। एक मन्त्र बोलकर, सम्बन्धित वस्तु चढ़ाने का समय देकर ही दूसरा मन्त्र बोला जाए।
 
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि॥ १॥
आसनं समर्पयामि॥ २॥  पाद्यं समर्पयामि॥ ३॥
अर्घ्यं समर्पयामि॥ ४॥ आचमनं समर्पयामि॥ ५॥
स्नानं समर्पयामि॥ ६॥ वस्त्रं समर्पयामि॥ ७॥
यज्ञोपवीतं समर्पयामि॥ ८॥ गन्धं विलेपयामि॥ ९॥
अक्षतान् समर्पयामि॥ १०॥ पुष्पाणि समर्पयामि॥ ११॥
धूपं आघ्रापयामि॥ १२॥ दीपं दर्शयामि॥ १३॥
नैवेद्यं निवेदयामि॥ १४॥ ताम्बूलपूगीफलानि समर्पयामि॥ १५॥
दक्षिणां समर्पयामि॥ १६॥ सर्वाभावे अक्षतान् समर्पयामि ॥१७॥

ततो नमस्कारं करोमि-

ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥



<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118