॥ विसर्जनम् ॥
आवाहन किये गये यज्ञ पुरुष, गायत्री माता, देव परिवार सबको भावभरी विदाई देते हुए पूजा- वेदी पर पुष्प वर्षा की जाती है। पुष्पों के अभाव में पीले अक्षत बरसाये जाते हैं। विसर्जन के साथ यह प्रार्थना भी है कि ऐसा ही देव अनुग्रह बार- बार मिलता रहे।
ॐ गच्छ त्वं भगवन्नग्ने, स्वस्थाने कुण्डमध्यतः।
हुतमादाय देवेभ्यः, शीघ्रं देहि प्रसीद मे॥
गच्छ- गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर।
यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन॥
यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं, पुनरागमनाय च॥
इसके पश्चात् जयघोष, अन्त में प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम समाप्त किया जाए।
॥ जयघोष॥
१. गायत्री माता की- जय। २. यज्ञ भगवान् की- जय।
३. वेद भगवान् की- जय। ४. भारतीय संस्कृति की- जय।
५. भारत माता की- जय। ६. एक बनेंगे- नेक बनेंगे।
७. हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा। ८. हम बदलेंगे- युग बदलेगा।
९. विचार क्रान्ति अभियान- सफल हो,सफल हो, सफल हो।
१०. ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल- सदा जलेगी- सदा जलेगी।
११. ज्ञान यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर- घर में जायेंगे।
१२. नया सबेरा नया उजाला- इस धरती पर लायेंगे।
१३. नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
१४. जन्म जहाँ पर- हमने पाया।
१५. अन्न जहाँ का- हमने खाया।
१६. वस्त्र जहाँ के- हमने पहने।
१७. ज्ञान जहाँ से- हमने पाया।
१८. वह है प्यारा- देश हमारा।
१९. देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे, हम करेंगे।
२०. युग निर्माण कैसे होगा- व्यक्ति के निर्माण से।
२१. माँ का मस्तक ऊँचा होगा- त्याग और बलिदान से।
२२. नित्य सूर्य का ध्यान करेंगे- अपनी प्रतिभा प्रखर करेंगे।
२३. मानव मात्र- एक समान।
२४. जाति वंश सब- एक समान।
२५. नर और नारी- एक समान।
२६. नारी का सम्मान जहाँ हैं- संस्कृति का उत्थान वहाँ है।
२७. जागेगी भाई जागेगी- नारी शक्ति जागेगी।
२८. धर्म की- जय हो।
२९. अधर्म का- नाश हो।
३०. प्राणियों में- सद्भावना हो।
३१. विश्व का- कल्याण हो।
३२. हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
३३. हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
३४. इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
३५. वन्दे- वेद मातरम्।
॥ देव-दक्षिणा-श्रद्धाञ्जलि॥यज्ञ आयोजन में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को यज्ञ भगवान् के- देवताओं के प्रति श्रद्धा- दक्षिणा के रूप में अपनी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक दुष्प्रवत्तियों में से कोई एक छोड़ने का अनुरोध करना चाहिए, कहना चाहिए कि देवता किसी की श्रद्धा- भक्ति इसी आधार पर परखते हैं कि उनने कुमार्ग छोड़ने और सन्मार्ग अपनाने के लिए कितना साहस दिखाया। यह साहस ही वह धन है, जिसके आधार पर देव शक्तियों की प्रसन्नता एवं अनुकम्पा प्राप्त की जा सकती है। इस अवसर पर जबकि सभी देवता उपस्थित हुए हैं, सभी उपस्थित सज्जनों को उन्हें कुछ भेंट प्रदान करनी चाहिए। खाली हाथ स्वागत और विदाई नहीं करनी चाहिए। त्याज्य दुष्प्रवृत्तियों में कुछ का उल्लेख यहाँ है।
त्यागने योग्य दुष्प्रवृत्तियाँ १- चोरी, बेईमानी, छल, मुनाफाखोरी, हराम की कमाई, मुफ्तखोरी आदि। अनीति से दूर रहना, अनीति से उपार्जित धन का उपयोग न करना।
२- मांसाहार तथा मारे हुए पशुओं के चमड़े का प्रयोग बन्द करना।
३- पशुबलि अथवा दूसरों को कष्ट पहुँचाकर अपना भला करने की प्रवृत्ति छोड़ना।
४- विवाहों में वर पक्ष द्वारा दहेज लेने तथा कन्या पक्ष द्वारा जेवर चढ़ाने का आग्रह न करना।
५- विवाहों की धूमधाम में धन की और समय की बर्बादी न करना।
६- नशे (तम्बाकू, शराब, भाँग, गाँजा, अफीम आदि) का त्याग।
७- गाली- गलौज एवं कटु भाषण का त्याग।
८- जेवर और फैशनपरस्ती का त्याग।
९- अन्न की बर्बादी और जूठन छोड़ने की आदत का त्याग।
१०- जाति- पाँति के आधार पर ऊँच- नीच, छूत- छात न मानना।
११- पर्दाप्रथा का त्याग, किसी को पर्दा करने के लिए बाध्य न करना। स्वयं पर्दा न करना।
१२- महिलाओं एवं लड़कियों के साथ पुरुषों और लड़कों की तुलना में भेदभाव या पक्षपात न करना।
अपनाने योग्य सत्प्रवृत्तियाँ १- कम से कम दस मिनट नित्य नियमित गायत्री उपासना।
२- घर में अपने से बड़ों का नियमित अभिवादन करना।
३- छोटों के सम्मान का ध्यान रखना, उनसे तू करके न बोलना।
४- अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहना तथा उनका पालन करना।
५- परिश्रम का अभ्यास बनाये रहना, किसी काम को छोटा न समझना।
६- नियमित स्वाध्याय, जीवन को सही दिशा देने वाला सत्साहित्य कम से कम आधा घण्टे नित्य स्वयं पढ़ना या सुनना।
७- भारतीय संस्कृति की प्रतीक शिखा एवं यज्ञोपवीत का महत्त्व समझना, उन्हें निष्ठापूर्वक धारण करना, दूसरों को प्रेरणा देना।
८- सादगी का जीवन जीना, औसत भारतीय स्तर के रहन- सहन के अनुरूप विचार एवं अभ्यास बनाना। उसमें गौरव अनुभव करना।
९- ज्ञानयज्ञ- सद्विचार के प्रसार के लिए कम से कम एक रुपया धन और एक घण्टा समय प्रतिदिन बचाकर सही ढंग से खर्च करना।
१०- परिवार में सामूहिक उपासना, आरती आदि का क्रम चलाना।
११- प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन सामूहिक रूप से यज्ञीय वातावरण में मनाना तथा जीवन की सार्थकता के लिए व्रतशील जीवनक्रम बनाना।
१२- समाज के प्रति, अपने उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूकता, समाज में सत्प्रवृत्तियाँ बढ़ाने के लिए किये जाने वाले सामूहिक प्रयासों में उत्साह
भरा सहयोग देना।
इस श्रद्धाञ्जलि के लिए छपे हुए प्रतिज्ञा पत्र, जो भी अर्पण करना चाहें, उन्हें दे देने चाहिए और उन्हें भरने का अनुरोध कर देना चाहिए। जो दुष्प्रवृत्तियाँ छोड़ी हों, उनके आगे निशान लगाते हुए अर्पणकर्ता को अपना पूरा नाम व पता उसी फार्म पर लिखकर देना चाहिए। दुष्प्रवृत्ति वही छोड़ी जाए, जो इस समय अपने में हो। जो नहीं है, उन्हें छोड़ने का कोई प्रयोजन नहीं। प्रतिज्ञा को दृढ़तापूर्वक निभाया जाना चाहिए।
श्रद्धाञ्जलि अर्पणकर्त्ताओं को पुरोहित मङ्गल आशीर्वाद, तिलक समेत एक मङ्गल पुष्पोपहार देते जाएँ। प्रतिज्ञा पत्र, अक्षत, पुष्प दाहिने हाथ में लेकर बायाँ हाथ नीचे लगा लें, सङ्कल्प पढ़ें और यह तीनों वस्तुएँ वेदी के समीप रखे थाल में पंक्तिबद्ध जाकर चढ़ा दें।