कर्मकाण्ड भास्कर

॥ सरस्वती वन्दना॥

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माँ सरस्वती वाणी की देवी हैं। कर्मकाण्ड में वाणी का प्रयोग करना पड़ता है। यदि वाणी सुसंस्कृत न हुई, तो उसमें प्रभाव पैदा नहीं होगा, बोले गए मन्त्र शब्दमात्र न रह जाएँ, मन्त्र बनें, कहे हुए शब्दों में अन्तःकरण को प्रभावित करने योग्य प्राण पैदा हो, इस कामना- भावना के साथ माँ सरस्वती की भाव- भरी वन्दना की जाए।

लक्ष्मीर्मेधा धरापुष्टिः, गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिः, अष्टाभिर्मां सरस्वति॥ १॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं, भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेद वेदान्तवेदाङ्ग, विद्यास्थानेभ्य एव च ॥ २॥
मातस्त्वदीयपदपङ्कज - भक्तियुक्ता,
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण,
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन॥ ३॥





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