कर्मकाण्ड भास्कर

॥ साधनादिपवित्रीकरणम् ॥

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सत्कार्यों- श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए यथाशक्ति साधन- माध्यम भी पवित्र रखने चाहिए। यज्ञ, संस्कार आदि कार्यों में जो उपकरण साधन- सामग्री प्रयुक्त हों, उनमें भी देवत्व का संस्कार जगाया जाता है। फल काटने का चाकू साफ किया, पोंछा जाता है। आपरेशन के चाकू को भाप के ऊँचे दबाव और तापक्रम पर शोधित किया जाता है, अदृश्य विषाणुओं से मुक्त किया जाता है। कर्मकाण्ड में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों- साधनों में सन्निहित अशुभ संस्कार हटाये जाते हैं, उन्हें मन्त्र शक्ति से नष्ट किया जाता है।

परिस्थितियों के अनुरूप एक या अधिक स्वयंसेवक जल कलश लेकर खड़े हों। मन्त्र पाठ के साथ पल्लवों, कुशाओं या पुष्पों से सभी उपकरणों- साधनों का सिंचन करें। समिधा, पात्र, हव्य आदि सभी का सिंचन किया जाए। भावना करें कि भाव भरे आवाहन और मन्त्र शक्ति के प्रभाव से उनमें कुसंस्कारों के पलायन और सुसंस्कारों के उभार- स्थापन का क्रम चल रहा है।

ॐ पुनाति ते परिस्रुत ,सोम  सूर्यस्य दुहिता।
वारेण शश्वता तना।                                             
  -१९.४

ॐ पुनन्तु मा देवजनाः, पुनन्तु मनसा धियः।
पुनन्तु विश्वा भूतानि, जातवेदः पुनीहि मा।                 -१९.३९

ॐ यत्ते पवित्रमर्चिषि, अग्ने विततमन्तरा।
ब्रह्म तेन पुनातु मा॥                                               -१९.४१

ॐ पवमानः सो अद्य नः, पवित्रेण विचर्षणिः।
यः पोता स पुनातु मा।                                             -१९.४२

ॐ उभाभ्यां देव सवितः, पवित्रेण सवेन च।
मां पुनीहि विश्वतः॥                                                 -१९.४३

यह क्रम यज्ञों, संस्कारों, भूमि- पूजन, प्राण- प्रतिष्ठा, पर्वायोजनों आदि सभी में अपनाये जाने योग्य है।




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