॥ त्रिदेव पूजन॥
सूत्र संकेत- युग निर्माण अभियान के अन्तर्गत, जो बड़े आयोजन होते हैं,
उनमें त्रिदेव पूजन की परिपाटी है। इसमें आद्यशक्ति वेदमाता गायत्री,
भारतीय धर्म के जनक यज्ञदेव और युगावतार के प्रतीक ज्योति पुरुष, जन समूह
युक्त लाल मशाल का पूजन किया जाता है।
तीन मन्त्रों की सशक्त
व्याख्या के साथ किया जाने वाला यह संक्षिप्त पूजन अनेक दृष्टियों से
उपयोगी है। इससे युग परिवर्तन की आधार रूप तीन शक्तियों का महत्त्व जन- जन
के मानस में जमता है। इससे उनमें अपने दृष्टिकोण, आचरण एवं व्यवहार बदलने-
सँभालने की प्रेरणा मिलती है। थोड़ी सी ही प्रखर- चिन्तन युक्त व्याख्या से
भाव- भरी श्रद्धा का वातावरण बन जाता है। लम्बे पूजन क्रम में तो थोड़े से
विशिष्ट श्रद्धालुजन ही बैठते हैं। उसके साथ जो प्रेरणा का संचार किया जाता
है, थोड़े समय के लिए आने वाले व्यक्ति उससे वञ्चित रह जाते हैं। यह पूजन
उस समय भी कराया जा सकता है। जब मुख्य कार्य प्रारम्भ होने को हो और
अधिकांश व्यक्ति उपस्थित हो गये हों। जैसे पर्व प्रकरण में मुख्य सन्देश
देने के ठीक पहले, बड़े यज्ञों में सामान्य देवपूजन पूरा हो जाने पर,
विशिष्ट गोष्ठियों आदि के समय श्रद्धा भरा वातावरण बनाने के लिए भी यह पूजन
किया जा सकता है।
शिक्षण एवं प्रेरणा- यह सृष्टि त्रिआयामी कही
गयी है। तीन लोक, तीन देव, तीन शरीर, तीन गुणों आदि से सभी परिचित हैं। इसी
प्रकार की स्थापना के भी तीन आधार तीन देव शक्तियों के रूप में हैं। इनके
सान्निध्य, संसर्ग और संयोग से ही अवाञ्छनीयता का निवारण होकर वाञ्छित
सुयोग बन सकेंगे।
१- आद्यशक्ति गायत्री- भारतीय संस्कृति- देवसंस्कृति
की जननी गायत्री, जिन्हें वेदमाता, देवमाता एवं विश्वमाता के नाम से भी
जानते हैं, सद्भाव एवं सद्विचारों का उभार- उन्नयन इन्हीं की कृपा से, इनसे
सम्बन्धित गुह्य सूत्रों को धारण करने से सम्भव होता है। अनास्था असुर के
सर्वव्यापी अस्तित्व को यही असुर निकन्दिनी, महाप्रज्ञा के रूप में समाप्त
करेगी।
२- यज्ञ भगवान्- यह सृष्टि यज्ञमय है। ईश्वरीय अनुशासन से
चलने वाले आदान- प्रदान के क्रम को यज्ञ कहा जाता है। इसीलिए इसे देव धर्म
का जनक कहा गया है। यज्ञीय भाव की स्थापना से ही कर्म और व्यवहार में से
अधोगामी प्रवृत्ति समाप्त होकर श्रेष्ठता की ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों का
विकास होगा। इसी आधार पर नवयुग की स्थापना सम्भव होगी।
३-
ज्योतिपुरुष- युग शक्ति निष्कलंक अवतार के लीला- सन्दोह का प्रतीक जनशक्ति
युक्त मशाल का चिह्न है। दिव्य संरक्षण और अनुशासन में जन समर्थित प्रचण्ड
शक्ति का प्रवाह उदय होता है। अवाञ्छनीयता के निवारण और वाञ्छनीयता की
स्थापना में असम्भव को सम्भव यही बनाएगी। ध्वंस और सृजन की, गलाई और ढलाई
की संयुक्त प्रक्रिया इसी के द्वारा संचालित होगी।
क्रिया और भावना- हाथ में जल, पुष्प, अक्षत लेकर भावनापूर्वक मन्त्रोच्चार के साथ पूजन वेदी पर क्रमशः अर्पित करें।
१-
आद्यशक्ति गायत्री- भावना करें कि आद्यशक्ति करुणामयी विश्वमाता की शरण
में जाकर हम सब उनकी करुणा, संवेदना, मङ्गल भावना से सुसंस्कारित हो रहे
हैं।
ॐ गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा
ककुप्सूचीभिः, शम्यन्तु त्वा। ॐ गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि,
ध्यायामि॥ -२३.३३
२- यज्ञ भगवान्- भावना करें कि दिव्य अनुशासन से
जुड़कर हम सबकी चेतना क्रियाशीलता को,पराक्रम पुरुषार्थ को यज्ञ जैसी
प्रखरता- पवित्रता प्राप्त हो रही है।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः, तानि
धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त, यत्र पूर्वे साध्याः
सन्ति देवाः। ॐ यज्ञपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। -३१.१६
३-
ज्योतिपुरुष- भावना करें कि युग शक्ति एक प्रचण्ड प्रवाह के रूप में उभर
रही है, उसकी एक किरण हम भी हैं। उस विशाल तन्त्र के एक घटक के नाते, हम उस
विराट् की वन्दना, अभ्यर्थना कर रहे हैं।
ॐ अग्ने नय सुपथा राये,
अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां
ते नमऽ उक्तिं विधेम॥ ॐ ज्योतिपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि,
ध्यायामि। - ५.३६, ७.४३