व्यासपीठ पर बैठकर कर्मकाण्ड संचालन का जो उत्तरदायित्व उठाया है, उसके अनुरूप अपने अन्तःकरण, बुद्धि, मन, वाणी आदि को बनाने की याचना, उसके निर्वाह का प्रयास पूरी ईमानदारी से करने के सङ्कल्प की घोषणा के भाव से व्यास वन्दना के एक- दो श्लोक भाव विभोर होकर बोले जाएँ।
व्यासाय विष्णुरूपाय, व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये, वासिष्ठाय नमो नमः ॥१॥
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे, फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र।
येन त्वया भारततैलपूर्णः, प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः। - ब्र०पु० १३८.११
ये सभी कृत्य आचार्य- संचालक के अपने संस्कार के हैं। इन्हें जितनी प्रगाढ़ श्रद्धा के साथ किया जाता है, दिव्य प्रवाह से जुड़ जाने की उतनी ही प्रभावी सम्भावना बन जाती है।
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