कर्मकाण्ड भास्कर

प्रारम्भिक कर्मकाण्ड
कर्मकाण्ड की व्यवस्था बनाकर, जाँचकर जब कर्मकाण्ड प्रारम्भ करना हो, तो संचालक को सावधान होकर वातावरण को अनुकूल बनाना चाहिए। कुछ जयघोष बोलकर शान्त रहने की अपील करके कार्य प्रारम्भ किया जाए। संचालक- आचार्य का काम करने वाले स्वयंसेवक को नीचे दिये गये अनुशासन के साथ कार्य प्रारम्भ करना चाहिए, वे हैं- (१) व्यासपीठ नमन, (२) गुरुवन्दना, (३) सरस्वती वन्दना, (४) व्यास वन्दना।
ये चारों कृत्य कर्मकाण्ड के पूर्व के हैं। यजमान के लिए नहीं, संचालक- आचार्य के लिए हैं। कर्मकाण्ड ऋषियों, मनीषियों द्वारा विकसित ज्ञान- विज्ञान से समन्वित अद्भुत कृत्य हैं, उस परम्परा का निर्वाह हमसे हो सके, इसलिए उस स्थान को तथा अपने आपको संस्कारित करने, उस दिव्य प्रवाह का माध्यम बनने की पात्रता पाने के लिए ये कृत्य किये जाते हैं।
व्यासपीठ नमन- व्यासपीठ पर- संचालक के आसन पर बैठने के पूर्व उसे श्रद्धापूर्वक नमन करें। यह हमारा आसन नहीं, व्यासपीठ है। इसके साथ एक पुनीत परिपाटी जुड़ी है। उस पर बैठकर उस परिपाटी के साथ न्याय कर सकें, इसके लिए उस पीठ की गरिमा- मर्यादा को प्रणाम करते हैं, तब उस पर बैठते हैं।

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